Sudhir Kumar
. "गंगा बनी गोदावरी" एक बार पृथ्वी पर जल-वृष्टि न होने के कारण चारों ओर अकाल फैला हुआ था। सरिता, ताल-तलैया और सरोवर सूख गए थे। कुओं में भी पानी नहीं रह गया था। कहीं भी हरियाली देखने को नहीं मिलती थी। मनुष्य, पशु और पक्षी जल के अभाव में तड़प रहे थे। परन्तु महर्षि गौतम के आश्रम पर उस भीषण अकाल का नाम-निशान भी नहीं था। आश्रम के आस-पास घनी हरियाली तो थी ही, सरोवर में भी स्वच्छ जल लहराया करता था। जब चारों ओर जल का अभाव हो गया, तो दूर-दूर के पशु-पक्षी सरोवर के पास आकर रहने लगे और सरोवर के पानी को पीकर सुख से जीवन बिताने लगे। मनुष्यों को भी जब उस सरोवर का पता चला तो झुंड के झुंड गौतम के पास पहुंचे, और उनसे विनीत स्वर में बोले, “ऋषिवर! हम सब पानी के बिना दुख पा रहे हैं। अनुमति दीजिए, ताकि हम सब आपके सरोवर के जल का उपयोग कर सकें।” गौतम ने कहा, “आश्रम आप सबका है, सरोवर भी आप सबका ही है। आप स्वतंत्रता पूर्वक सरोवर के जल का उपयोग कर सकते हैं।” फिर क्या था, झुंड के झुंड लोग तरह-तरह की सवारियों पर अपना सामान लादकर सरोवर के पास आकर बसने लगे। कुछ ही दिनों में सरोवर के आस पास चारों ओर अच्छा-खासा नगर बस गया। सरोवर के जल से सबको नया जीवन मिलने लगा। सब गौतम के तप और त्याग की भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे। पर मनुष्यों में कुछ ऐसे भी लोग थे, जो दुष्ट प्रकृति के थे। उन्होंने जब जन-जन के मुख से गौतम की प्रशंसा सुनी, तो उनके मन में गौतम के प्रति ईर्ष्याग्नि जल उठी। उन्हें गौतम की प्रशंसा नहीं सुहाई। वे कोई ऐसा उपाय सोचने लगे जिससे गौतम को नीचा देखना पड़े। उनके इस प्रयत्न में कुछ ऋषि-मुनि भी सम्मिलित हो गए, पर गौतम को नीचा दिखाना सरल काम नहीं था, क्योंकि वे बड़ी निष्ठा से सदा मानव की भलाई में लगे रहते थे। जब दुष्ट स्वभाव के मनुष्यों का किसी तरह वश नहीं चला, तो वे सब मिलकर गणपति की सेवा में उपस्थित हुए। सबने हाथ जोड़कर निवेदन किया, “गणपति! ऋषि गौतम गर्व से फूलकर पथ-भ्रष्ट हो रहे हैं। कोई ऐसा उपाय कीजिए, जिससे उनका गर्व धूल में मिल जाए।” गणपति ने कहा, “आश्चर्य है, आप लोग गौतम के संबंध में मन में ऐसी धारणा रखते हैं। गौतम तो तप और त्याग की मूर्ति हैं। उन्होंने वरुण की उपासना करके उस स्वच्छ जलवाले सरोवर को प्राप्त किया। यदि आज वह सरोवर न होता, तो क्या आप लोगों का जीवन सुरक्षित रह सकता था?” परन्तु उन दुष्ट मनुष्यों के हृदय पर गणपति की बात का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा। वे अपनी बात पर अड़े रहे और प्रार्थना पूर्वक गणपति से आग्रह करते रहे। गणपति ने विवश होकर कहा, “आप लोग नहीं मानते, तो मैं कुछ करूँगा लेकिन उससे आप लोगों का ही अहित होगा।” गणपति की बात सुनकर दुष्ट स्वभाव के सभी मनुष्य तुष्ट होकर अपने-अपने घर चले गए। एक दिन दोपहर के बाद गौतम अपने आश्रम की वाटिका में पुष्पों के पौधों को सींच रहे थे। हठात एक दुबली-पतली गाय वाटिका में घुसकर पौधों को खाने लगी। गौतम गाय को पकड़कर उसे अलग कर देना चाहते थे, पर ज्यों ही उन्होंने गाय को हाथ लगाया, वह गिर पड़ी और निष्प्राण हो गई। यह देख गौतम स्तब्ध रह गए और गाय की ओर देखकर बोले, “ओह, यह कैसा अनर्थ हो गया।” तभी गौतम के कानों में एक आवाज पड़ी, “गौतम पापी है। गाय का हत्यारा है।” गौतम ने पीछे मुड़कर देखा, बहुत से लोग खड़े थे। उनके साथ कुछ ऋषि-मुनि भी थे। वे सम्मिलित स्वर में गौतम को पापी और हत्यारा घोषित कर रहे थे। चारों ओर गौतम की निंदा होने लगी। गौतम बहुत दु:खी हुए। वे अपने पाप का प्रायश्चित करने के लिए अहल्या को साथ लेकर आश्रम छोड़कर चले गए। दुष्ट स्वभाव के मनुष्य बहुत प्रसन्न हुए। उनका मनचाहा पूरा हो गया। गौतम एक वन में गए। वन के वृक्षों को काटकर, उन्होंने एक कुटी बनाई और वहाँ रहकर तप करने लगे। अहल्या दिन-रात उनकी सेवा में लगी रहती थी। तप करते हुए गौतम को बहुत दिन बीत गए। प्राय: ऋषि-मुनि भी वहाँ आया करते थे। उन्होंने गौतम से कहा, “तप से गौ हत्या का पाप दूर नहीं होगा। यदि आप भी गौ हत्या के पाप से मुक्त होना चाहते हैं तो गंगा में स्नान कीजिए।” गौतम गंगा में स्नान करें, तो कैसे करें ? गंगा तो वहाँ थी ही नहीं। गौतम गंगा को प्रकट करने के लिए भगवान शिव की आराधना करने लगे। गौतम के तप, त्याग और आराधना से भगवान शंकर प्रसन्न हुए। वे प्रकट होकर बोले, “महामुने! मैं आपकी आराधना से प्रसन्न हूँ। बोलिए, आपको क्या चाहिए ?” गौतम ने निवेदन किया, “प्रभु! मुझे गौ हत्या का पाप लगा है। कृपा करके मुझे गंगा दीजिए। मैं गंगा में नहाकर पाप से मुक्त होना चाहता हूँ।” भगवान शंकर मुस्कुराकर बोले – “महामुने! आपको गौ हत्या का पाप नहीं लगा है। आपको छल का शिकार बनाया गया है। जिन्होंने आपके साथ षड्य
Sudhir Kumar
जिसके सपने हमें रोज़ आते रहे, दिल लुभाते रहे ये बता दो, बता दो ये बता दो कहीं तुम, वही तो नहीं, वही तो नहीं जब भी झरनों से मैंने सुनी रागिनी मैं ये समझा तुम्हारी ही पायल बजी ओ जिसकी पायल पे ओ जिसकी पायल पे हम दिल लुटाते रहे, जां लुटाते रहे ये बता दो कहीं तुम... जिसके रोज़ रोज़ हम गीत गाते रहे, गुनगुनाते रहे ये बता दो कहीं तुम, वही तो नहीं वही तो नहीं ये महकते-बहकते हुए रास्ते खुल गए आप ही प्यार के वास्ते दे रही है पता मद-भरी वादियाँ जैसे पहले भी हम-तुम मिले हो यहाँ ओ कितने जन्मों से कितने जन्मों से जिसको बुलाते रहे, आज़माते रहे ये बता दो कहीं तुम... seema modi Movie/Album: गीत (1970) Music By: कल्याणजी-आनंदजी Lyrics By: आनंद बक्षी Performed By: महेंद्र कपूर, लता मंगेशकर
Sudhir Kumar