Sudhir Kumar
ब्रह्मवेत्ता संत के चरणों में बैठकर सत्संग सुनने वाला बड़ा भाग्यशाली होता है परंतु सत्संग किसलिये सुनना है ? उसे आचरण में लाकर मानव जन्म को सफल बनाने के लिये !आचरण मे लाये बिना विद्या पंगु है ठीक ऐसे ही जैसे केवट के बिना नाव ! एक संत ने अपने दो शिष्यों को दो डिब्बों में मूँग के दाने दिये और कहा -ये मूँग हमारी अमानत हैं ये सड़े गले नहीं बल्कि बढ़े-चढ़े यह ध्यान रखना ;दो वर्ष बाद जब हम वापस आयेंगे तो इन्हें ले लेंगे यह कहकर तो संत तीर्थयात्रा के लिये चले गये ! एक शिष्य ने मूँग के डिब्बे को पूजा के स्थान पर रखा और रोज उसकी पूजा करने लगा दूसरे शिष्य ने मूँग के दानों को खेत में बो दिया इस तरह दो साल में उसके पास बहुत मूँग जमा हो गये ! दो साल बाद जब संत वापिस आये और पहले शिष्य से अमानत वापस माँगी तो वह अपने घर से डिब्बा उठा लाया और संत को थमाते हुए बोला -गुरूदेव आपकी अमानत को मैंने अपने प्राणों की तरह सँभाला है इसे पालने में झुलाया आरती उतारी पूजा-अर्चना की इत्यादि-2 ! संत बोले -अच्छा जरा देखूँ तो सही कि अन्दर के माल का क्या हाल है ?संत ने ढक्कन खोलकर देखा तो मूँग में घुन लगे पड़े थे !आधे मूँग की तो वे चटनी बना गये थे बाकी बचे-खुचे भी बेकार हो गये थे ! संत ने शिष्य को मूँग दिखाते हुए कहा -क्यों बेटा इन्ही घुनों की पूजा अर्चना करते रहे इतने समय तक !शिष्य बेचारा शर्म से सिर झुकाये चुपचाप खड़ा रहा ! संत ने फिर दूसरे शिष्य को बुलवाकर उससे कहा -अब तुम भी हमारी अमानत लाओ !थोड़ी देर में दूसरा शिष्य मूँग लादकर आया और संत के सामने रखकर हाथ जोड़कर बोला -गुरूदेव यह रही आपकी अमानत ! संत बहुत प्रसन्न हुए और उसे आशीर्वाद देते हुए बोले -बेटा तुम्हारी परीक्षा के लिये मैंने यह सब किया था !मैं तुम्हें वर्षों से जो सत्संग सुना रहा हूँ उसको यदि तुम आचरण में नहीं लाओगे अनुभव में नहीं उतारोगे तो उसका भी हाल इस डिब्बे में पड़े मूँग जैसा हो जायेगा ! यदि सुने हुए सत्संग का मनन करोगे खुद गोता मारोगे और दूसरों को भी यह अमृत बाँटोगे तो उसका फल अनंत गुना मिलेगा ! मिश्री-2 रटने मात्र से मुँह मीठा नही हो जाता बल्कि उसके लिए धन कमाना पड़ता है फिर दुकान से मिश्री खरीदकर उसे खाने से उसके स्वाद का अनुभव होता है !भले ही आपके सामने एक से बढ़कर एक व्यंजन रखे हों परंतु उन्हें खाये बिना आपकी भूख नहीं मिटेगी ! ऐसे ही सत्संग से जो पवित्र ज्ञान सुना है उसे अपनाने से अपना जीवन बदलता है और इच्छित वस्तु की अर्थात् जिसके लिये सत्संग सुना उस परमात्मा की प्राप्ति होती है !सत्संग को जीवन में उतारने वाला पुरूषार्थी व्यक्ति ही सच्चा सत्संगी एवं संत-प्रेमी होता है ! मेरे दुख के दिनो में वे बड़े काम आते हैं जब कोई नहीं आता मेरे राम आते हैं
Sudhir Kumar
Good job
Sudhir Kumar