Sudhir Kumar
कितना मासूम है ये परिंदा नहीं जागता ये किसी शोर पर, नहीं भागता ये किसी दौड़ पर, नयी उम्मीद होतीं रोज भोर पर, कोमल पंख लिये उड़ जाना चाहता सृष्टि के छोर पर, खाना भी तो अभी नहीं आता इसको, नहीं जानता क्रूर जगत को, नहीं जानता समय दौर को, बस उड़ जाना चाहता है निर्भीक, नहीं जानता तू शिकारी के जाल को, नहीं जानता खुराफाती चाल को, कमजोरों के लिये नहीं बनी ये दुनियाँ, ताकतवर खा जाता हर कमजोर को, बच्चे अभी तुझे जरूरत है, माँ के आँचल की, प्रेम और दुलार की, जीये जो तेरे लिये उस प्यार की, अभी बहुत नादान है तू, ऐ नन्हे परिंदे मेरे, हो जाना आज़ाद मेरे बच्चे, जिस दिन हों मज़बूत पंख तेरे, और होंसले हों बुलंद तेरे, कर लेना दुनियाँ मुट्ठी में, रहेगा तुझ पर गर्व मुझे, मैं रहूँ न रहूँ लेकिन, उस दिन जी उठूंगी, संग तेरे तेरी बुलंदी पर, दिल में तेरे।। Sudhir Kumar Gupta 1/8/19
Sudhir Kumar
सहमी-सहमी सी हर नजर, हर पाँव में जंजीर है .............. 1963 में फूलन का जन्म हुआ( यू.पी.) 11 साल की उम्र में पुत्तू लाल से शादी 15 साल की उम्र में गाँव के दबंगों द्वारा सामूहिक बलात्कार। जिस देश की स्त्रियों को अपने ही घर की चहरदीवारी से बाहर निकलने की इजाजत लेनी पड़ती हो और जुबानों पर तरह-तरह की पाबन्दियाँ लगाई जाती हों। उसी देश में अत्यंत साधारण एक मल्लाह की बेटी का प्रतिरोध और उसकी गर्जना पूरा विश्व सुनेगा, यह भारतीय इतिहास में पहली बार हुआ। किसी स्त्री द्वारा किया गया ऐसा प्रतिरोध विश्व के इतिहास में कहीं नहीं मिलेगा। जातिवादी, सामंतवादी, वर्चस्वादी और गुलामी की जिस चादर को फूलन का समाज सदियों से ओढ़े हुये रो-रोकर जी रहा था, फूलन ने उसे बेनकाब कर दिया। फूलन ने भारतीय समाज के सामने अपने प्रतिरोध की मिसाल कायम करके यह साबित कर दिया कि इस देश में एक स्त्री की भी, कुछ गरिमा होती है। इस देश में स्त्री का भी, कुछ मतलब होता है। एक स्त्री के भी कुछ मायने होते हैं। एक स्त्री का भी कुछ संघर्ष होता है। एक स्त्री का भी इतिहास होता है। एक स्त्री के भीतर भी कुछ गर्जना होती है। एक स्त्री के भीतर भी साहस और शौर्य होता है। एक स्त्री की बीर गाथाएँ भी इतिहास में पढ़ी जाती हैं। चंबल की शेरनी, को उनकी #पुण्य तिथि पर शत-शत नमन। साभार।
Sudhir Kumar