रात आँखों में ढली, पलकों पे जुगनू आये
हम हवाओं की तरह जाके, उसे छू आये
बस गई है मेरे अहसास में ये कैसी महक
कोई खुशबू मैं लगाऊं तो तेरी खुशबू आये
उसने छू कर मुझे पत्थर से इंसान किया
मुद्दतों बाद मेरी आँख में आंसू आये
मैंने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ मांगी थी
कोई आहट ना हो दर पर मेरे जब तू आये
Sudhir Kumar Gupta
चाक जिगर के सी लेते हैं
जैसे भी हो जी लेते हैं
(चाक = फटा हुआ)
दर्द मिले तो सह लेते हैं
अश्क मिले तो पी लेते हैं
आप कहें तो मर जाएँ हम
आप कहें तो जी लेते हैं
बेज़ारी के अँधियारे में
जीने वाले जी लेते हैं
हम तो हैं उन फूलों जैसे
जो काँटों में जी लेते हैं
# Sudhir Kumar Gupta