Sudhir Kumar
भगवान कृष्ण और भगवान विष्णु के मध्य अंतर को सरल भाषा में इस उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है । कोई उच्च पद पर आसीन व्यक्ति यदि अपने कार्यालय में जाता है तो उसे सभी आदर-सत्कारपूर्ण व्यव्हार करते हैं । और जब वही व्यक्ति घर जाता है तो उसके निकटतम परिवारजन उसके साथ साधारण व्यक्ति जैसा व्यवहार करते हैं । यहाँ तक की वह व्यक्ति अपने पुत्र या पौत्र को कंधे पर बैठाकर घुमाता है । घरेलु सम्बन्ध , कार्यालय के सम्बन्ध की तुलना में अंतरंग होता है । जैसे व्यक्ति एक ही है पर व्यावहारिक आदान-प्रदान अलग-अलग है । उसी प्रकार भगवान कृष्ण और भगवान विष्णु एक ही हैं परंतु वैकुण्ठ में तथा गोलोक वृंदावन में व्यावहारिक सम्बन्ध अलग अलग हैं । वह धाम जहाँ उनके स्वांश (विष्णु या नारायण) निवास करते हैं, वैकुण्ठ कहलाते हैं जहाँ भगवान नारायण रूप में रहते हैं | तात्विक दृष्टि से गोलोक तथा वैकुंठ में कोई अंतर नहीं है किन्तु वैकुंठ में भगवान की सेवा भक्तों द्वारा असीम ऐश्वर्य द्वारा की जाती हैं जबकि गोलोक में उनकी सेवा शुद्ध भक्तों द्वारा सहज स्नेह भाव में की जाती है | भगवान श्री कृष्ण, विष्णु के रूप में उसी प्रकार विस्तार करते हैं जिस प्रकार एक जलता दीपक दूसरे को जलाता है | यधपि दोनों दीपक की शक्ति में कोई अंतर नहीं होता तथापि श्री कृष्ण आदि दीपक के समान हैं (ब्रह्म संहिता ५.४६) | भगवान श्री कृष्ण अवतारी हैं, जिनके सर्व प्रथम तीन पुरुष अवतार हैं | पहले अवतार कारणोंदकशायी विष्णु (महाविष्णु), जिनके उदर में समस्त ब्रह्माण्ड हैं तथा प्रत्येक श्वास चक्र के साथ ब्रह्माण्ड प्रकट तथा विनिष्ट होते रहते हैं | दूसरे अवतार है; गर्भोदकशायी विष्णु – जो प्रत्येक ब्रह्माण्ड में प्रविष्ट करके उसमे जीवन प्रदान करते हैं तथा जिनके नाभि कमल से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए | तीसरे अवतार हैं; क्षीरोदकशायी विष्णु – �
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#जीवात्मा कैसे अपने आपको समस्त कर्मों का #कर्ता #मान #बैठता है? भगवद् गीता के अध्याय 3 के 27 श्लोक में भगवान कृष्ण कहते है.. प्रकृते:क्रियमाणानिगुणै: कर्माणि सर्वशः। अहंकारविमुढात्मा कर्ताहमितिमन्यते।। जीवात्मा अहंकार के प्रभाव से मोहग्रस्त होकर अपने आपको समस्त कर्मों का कर्ता मान बैठता है, जब कि वास्तव में वे प्रकृति के तीनों गुणों द्वारा सम्पन्न किये जाते हैं । हमें हमेशा ही भगवान विष्णु की महिमा का श्रवण, कीर्तन और स्मरण करना चाहिये। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
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