Sudhir Kumar

परमात्मा की खोज में तो बहुत लोग निकलते हैं, लेकिन खोज नहीं पाते, क्योंकि मूल्य चुकाने की तैयारी नहीं होती; मुफ्त पाना चाहते हैं; बिना कुछ दिए पाना चाहते हैं; जरा सी भी आंच न आए, और पाना चाहते हैं; एक कांटा पैर में न चुभे, और पाना चाहते हैं। इसलिए पाने की आकांक्षा भी होती है, फिर भी हाथ कुछ नहीं लगता है। और जब हाथ न लगे तो आदमी का अहंकार बहुत कुशल है। जब परमात्मा हाथ नहीं लगता तो फिर उनका तर्क वही होता है जो लोमड़ी का तर्क: जब अंगूर हाथ नहीं लगते, लोमड़ी कहती है खट्टे हैं। जब परमात्मा हाथ नहीं लगता तो लोग सोचने लगते हैं परमात्मा है ही नहीं—होता तो हाथ लगता। लोग नास्तिक बन जाते हैं। आस्तिक बनने के लिए कोई कीमत नहीं चुकाई। और जब बिना कीमत चुकाए परमात्मा की कोई खबर नहीं मिलती तो नास्तिक बन जाते हैं। जब भी मैं किसी नास्तिक को देखता हूं तो मैं हारे हुए आस्तिक को पाता हूं। किसी जन्म में, किसी यात्रा में उसने बड़ी कोशिश की होगी; मगर कोशिश ऐसी रही होगी कि अपने को बचा कर की होगी। पूजा का थाल सजाया होगा। पूजा के थाल में दीया जलाया होगा; लेकिन अपने को नहीं जलाया। और तुम्हारा पूजा का थाल व्यर्थ है, अगर तुम्हीं उसमें नहीं जल रहे हो। फूल चढ़ाए होंगे; लेकिन वे फूल अपने प्राणों के नहीं थे, वे किन्हीं वृक्षों पर खिले फूल थे। स्वयं में खिले फूलों को जो चढ़ाता है—वही पाता है। गीत भी गुनगुनाया होगा, भजन भी किया होगा, कीर्तन में भी सम्मिलित हुए होओगे; लेकिन उस कीर्तन में तुम्हारे अपने स्वर नहीं थे; सब उधार था, बासा था। औपचारिकता थी; हार्दिकता नहीं थी; दीवानापन नहीं था। और जब तक प्रेम पागल न हो, तब तक प्रेम ही नहीं; पागल होकर ही प्रेम का पद पाता है। प्रेम बिना पागलपन के घृणा से भी बदतर है, क्योंकि थोथा और नपुंसक होगा। घृणा में तो कुछ बल होता है। और जब नहीं मिलता परमात्मा तो विषाद की उन घड़ियों में मन अपने को यही समझा कर सांत्वना देता है कि होता तो मिलता; है ही नहीं। फिर एक इनकार पैदा होता है। एक नास्तिकता का जन्म होता है। फिर आदमी यही कहे चला जाता है कि ईश्वर है ही नहीं; प्रमाण कहां है? प्रमाण का प्रश्न ही नहीं है। मूल्य जिसके पास है उसके लिए प्रमाण है। जो देने को राजी है वह पाएगा। और देना भी ऐसा नहीं है कि थोड़ा—बहुत देने से चल जाए—पूरा ही पूरा देना होगा। क्योंकि परमात्मा अखंड है; उसके टुकड़े नहीं हो सकते। ऐसा नहीं है कि हम आधा देते हैं तो थोड़ा सा परमात्मा मिल जाए; कि जितना हम देते हैं उतना मिल जाए। परमात्मा के खंड नहीं हो सकते। तो तुम जब तक अखंड ही समर्पित न होओगे, तब तक उसे न पाओगे। तुम्हारी समग्रता ही चढ़नी चाहिए। एक ही बात करने जैसी है—वह है: अपने सारे प्राणों को उसके चरणों में समर्पित कर देना। और निश्चित ही अभी उसका हमें पता नहीं है। इसलिए जो व्यक्ति अज्ञात के प्रति समर्पण कर सकता है, वही उसे पा सकता है। मिल जाए परमात्मा फिर तो समर्पण करना बहुत आसान है। लेकिन अड़चन यही है कि मिलता तब है, जब समर्पण हो जाए। तो समर्पण तो जुआरी ही कर सकते हैं। जिन्हें लाभ इत्यादि की चिंता है, जो हिसाब—किताब कर रहे हैं—भक्ति का मार्ग उनके लिए नहीं। यह तो हिम्मतवर दुस्साहसियों का मार्ग है। - ओशो (पद घुंघरू बांध)

Sudhir Kumar

विश्व में तैरह प्रचीन धर्म है हिन्दू जैन बौद्ध सिख मुस्लिम इसाई यहूदी कंफ्युजियस शिंतो ताओ झेन शिंतो सिख पारसी है इनकी उत्पत्ति स्थान भिन्न भिन्न क्षेत्र व एक ही राष्ट्र में भी है । इनमें कुछ समानता कुछ असमानता है रीति रिवाज में । विश्व में धर्मो के मध्य काफी शांति है इसलिए मानव समाज प्रगतिशील है परन्तु कुछ कारणवश आये दिनों इनमें एक दूसरे के प्रति हिंसक हो जाते है ये स्वभाविक है क्योंकि इनकी मान्यता में बहुत ज्यादा अंतर भी है । विश्व में मुस्लिम धर्म में कुछ लोग आंतकी गतिविधि में लिप्त है उनका उद्देश्य विश्व में अन्य धर्मों को खत्म कर इस्लाम को बढाया जाऐ इसमें यहूदी इसाई व हिन्दू अधिक प्रभावित है । चीन में ताओ और बौध्द धर्म में बहुत दिनों में हिंसा कहा दंगे होते रहते है । वही बौध्द धर्म के अनुयायी भी हिंसक व्यहार करते म्यांमार में रोहिग्यो मुस्लिम के हत्याचार श्रीलंका में बौध्द मुस्लिम झड़प होते है । इनमें धर्म के शाखा के मध्य भी हिंसा होती है सिया सिन्नी की लडाई में आपगनिस्तान में अराजकता हो गयी बाकी जगह हिंसा का कारण राजनीति शासन प्रणाली गृहयुद्ध व आदि कारण होता है इन्हें विश्व सुरक्षा परिषद नियंत्रित करती है । परन्तु भारत में हिन्दू और मुस्लिम झड़प किसी भी क्षेत्र में होते रहती है इन्हें भारत शासन व राज्य शासन नियंत्रित कर शांति स्थापित करते है । भारत में ईसाई समुदाय हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन कर उन्हें इसाई बनते है क्योंकि इसाई मत के अनुसार उन्हें यशु के पास ले जाकर लोगों को सही रहा में ले जाऐ इसमें अधिकांश वे लोग है जो दुखी होते है उनकी बीमारी ठीक कर उनकी मदद कर जिन लोगों के पास सरकार की मदद नहीं पहुंचती व हिन्दू होते हुये भी उन्हें कोई हिन्दू संगठन पूछता नहीं है तो उन्हें क्रिश्चियन अपना बना लेते है जो मानवता के अनुसार सही भी कोई तो अब सुख दुख में साथ रहने वाला है और कुछ लोगों को भ्रमित कर उनका धर्मांतरण करते है ये बहुत ही गंभीर विषय है इसमें भारत सरकार भी संविधान के अनुसार चलते है की सभी को अपने धर्म संस्कृति का प्रचार प्रसार करनी की छूट है व कोई भी किसी भी धर्म को अपना सकता है इन्हें रोकना असम्भव है क्योंकि इसाई मत विस्तार निति से चलती है । जैन बौध्द सिख ईसाई धर्म की संख्या बहुत ही कम है हिन्दू व मुस्लिम के घनत्व के अनुसार इनमें झड़प नहीं होती है कभी कभार ही हो जाती है । हिन्दू जैन सिख व भारतीय बौध्द में मात्र भेदभाव व वादविवाद ही होता है हिंसा दंगे भारत में नहीं होते है । भारत में आदिवासी संस्कृति में गोंड व सरना में हिन्दू धर्म से अलग होकर अलग धर्म का कोड शासन से मांगते है पर भारत शासन ये समझती है की आदिवासी नेता उन्हें भ्रमित कर वोट बैंक बना रहे है इसलिए इन्हें अपने आप शांत होने देती है बहुत पहले से ही कुछ आदिवासी संस्कृति को मानते है धर्म को नहीं पर इसे वे ना स्वयं को ना किसी और को नुकसान पहुंचते है बस ये ऐसी चलता है । हिन्दू में जाति समाज का भेदभाव मात्र विवाह तक ही सीमित है बाकी सब मिलजुलकर रहते है और जो मतभेद है वे अमीरी-गरीबी का है कुछ लोग उस भेदभाव का कारण भ्रमवश जाति समाज का समझते है अगर उच्च नीच का भेदभाव भी है तो बहुत कम लोगों की मन में है । धार्मिक संगठन ब्रह्मकुमारी , यंत्र तंत्र मंत्र विज्ञान, गायत्री परिवार, राधास्वामी आदि ये अपने धर्म के साथ उस धार्मिक संगठन के संस्थापक व प्रवचन देने वाले बाबा पर भी आस्था रखते है इन्हें उस धार्मिक संगठन के विचारधारा से हटाया नहीं जा सकता है यही उनकी मानसिकता है जो सही है । कुछ प्रवचन देने वाले बाबा पूजा पाठ करने वाले लोग भी है जो लोगों भ्रमित कर धन दौलत नाम कमाने के लिए धार्मिक संगठन बनाये उनका भेद खुल जाने पर भारत शासन उचित कार्यवाही करती है । विश्व के प्रायः सभी मनुष्य अपने धर्म संस्कृति के मान्यता मानकर अपना संसारिक जीवन जीते है जिसमें उनके निजी व समाजिक जीवन के कर्तव्य उत्तरदायित्व व उद्देश्य की पूर्ति है । बहुत ही कम सौ पांचास वर्षों में एक दो बार मात्र हिन्दू धर्म के भीतर के जाति समाज में हिंसा देखा गया है वह भी किसी एक क्षेत्र में ऐसा होता है सौ पांचास वर्षों में किसी क्षेत्र में उसका कारण हमारा समाज की लड़की से प्यार किया या हमारे समाज के आदमी को मारा या किसी मांग को लेकर इनको भारत सरकार कानूनी हस्तक्षेप व सुरक्षा बल से शांत कर देती है । सभी धर्मों संस्कृति व समाज में बुध्दिमान विवेकशील व धैर्यवान लोग है जो अन्य धर्म संस्कृति के साथ आपसी झिड़प लड़ाई झगड़े को रोकने के लिए प्रयत्नशील रहते है और सभी धर्म संस्कृति समाज में स्वार्थी महात्वकांक्षी लोग है जो राजनीति या पैसा कमाने के लिए अपने समाज के लोगों को गुमराह कर अन्य धर्म संस्कृति व समाज के लड़ाई झगड़े करते है इनमें युवा किशोर व नासमझ लोग अधिक उग्र हो जाते है परन्तु कुछ वर्षों माह म

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