Sudhir Kumar
चमड़ी के प्रेमी मैं एक गांव में ठहरा हुआ था। वहां गोली चली। चार लोगों को गोली लग गई, तो उनका पोस्टमार्टम होता था। मेरे एक मित्र, जो चमड़ी के बड़े प्रेमी हैं…। अधिक लोग होते हैं। उपनिषद कहते हैं इस तरह के लोगों को चमार–चमड़ी के प्रेमियों को। चमड़े के जूते बनाने वाले को नहीं; जरूरी नहीं कि वह चमार हो। लेकिन चमड़ी के प्रेमी को! तो एक चमड़ी के प्रेमी मेरे मित्र थे। मुझे मौका मिला, मैंने उनसे कहा कि चलो, डाक्टर परिचित है, मैं तुम्हें पोस्टमार्टम दिखा दूं। उन्होंने कहा, उससे क्या होगा? मैंने कहा, थोड़ा देखो भी, आदमी के भीतर क्या है, उसे थोड़ा देखो। पोस्टमार्टम के गृह में भीतर प्रवेश किए, तो भयंकर बदबू थी, क्योंकि लाशें तीन दिन से रुकी थीं। वे नाक पर रूमाल रखने लगे। मैंने कहा, मत घबड़ाओ। जिन चमड़ियों को तुम प्रेम करते हो, उनकी यही गति है। थोड़ा और भीतर चलो। उन्होंने कहा, बहुत उबकाई आती है। वॉमिट न हो जाए! मैंने कहा, हो जाए तो कुछ हर्जा नहीं है। और भीतर आओ। जब हम गए, तो डाक्टर ने एक आदमी, जिसके पेट में गोली लगी थी, उसके पूरे पेट को फाड़ा हुआ था। तो सारी मल की ग्रंथियां ऊपर फूटकर फैल गई थीं। वे मेरे मित्र भागने लगे। मैं उन्हें पकड़ रहा हूं, खींच रहा हूं; वे भागते हैं! कहते हैं, मुझे मत दिखाओ! उन्होंने आंखें बंद कर लीं। मैंने कहा, आंखें खोलो। ठीक से देख लो। उन्होंने कहा, मुझे मत दिखाओ, नहीं तो मेरी जिंदगी खराब हो जाएगी! तुम्हारी जिंदगी क्यों खराब हो जाएगी? उन्होंने कहा, फिर मैं किसी शरीर को प्रेम न कर पाऊंगा। जब भी शरीर को देखूंगा, तो यह सब दिखाई पड़ेगा। बुद्ध कहते थे, जब शरीर आकर्षक मालूम पड़े, तो थोड़ा भीतर गौर करना कि है क्या वहां? तो शायद शरीर का जो राग है, वह टूट जाए और वैराग्य उत्पन्न हो। गीता दर्शन ओशो
Sudhir Kumar
मीरा का कृष्ण : मित्र मात्र !! यमुना के तट पर कृष्ण की प्रतीक्षा में राधा बेचैन सी । कृष्ण हमेशा लंबी प्रतीक्षा करवाते हैं , शायद जानबूझकर ताकि राधा उपालम्भ से भर जाये । और जब महाशय आयें तो राधा उलाहनों की बरसात कर दे ..वह कहे कि वह कृष्ण से कितना प्रेम करती है ....किस तरह वह वँशी के धुन पर मुग्ध हो जाती है ...किस तरह वह कृष्ण के अप्रतिम सौंदर्य की उपासिका है ...किस तरह वह कृष्ण के बिना अधूरी है । कृष्ण को कृष्ण की महत पहचान तो राधा से ही मिलती है । कृष्ण ने प्रेम स्वीकार किया पर संतुष्ट ना हुए ...राधा के समानांतर सहस्र गोपिकाएँ खड़ी कर दी । राधा ने पूछा ---क्यूँ ? कृष्ण ने कहा--- राधा , ये गोपिकाएँ भी मुझसे उतना ही प्रेम करती हैं जितना कि तुम ।। राधा चुप , मोहन चुप !! उन गोपिकाओं पर बड़ा गर्व था कृष्ण को । जब ऊधो ब्रह्म-ज्ञान -घट लेकर वापस कृष्ण के पास आये तो कृष्ण ने उत्सुक होकर पूछा -----क्या हुआ ऊधो ? क्या कहा गोपिकाओं ने ? ऊधो को जवाब मिला था उसने बता दिया ------ “ बिरहा की पीड़ छोडूँ तन का क्या काम रे , योग कहाँ धरूँ ऊधो अंग अंग श्याम रे ।। ” कृष्ण फुले न समाये । कृष्णत्व कुछ और बड़ा हो गया था आज ।। प्रेम से संतुष्ट हुए की नहीं वो तो वो ही जानें ...।। रुक्मणि ने कहा मैं तुम से प्रेम करती हूँ कृष्ण , मेरा वरण करो । कृष्ण ने कहा ---एवमस्तु !! रुक्मणि को हर लाये और शादी कर ली । लेकिन महल में सोलह हजार पटरानियां भी लाकर रख दिये । रुक्मणि ने पूछा ---क्यूँ ?? जवाब वही था । रानी चुप राजा चुप !! मीरा ने कभी कहा ही नहीं --" मैं तो गिरिधर गोपाल की ? उसने कहा -- मेरे तो गिरिधर गोपाल !! मीरा ने अपना सम्बन्ध कृष्ण के भरोसे छोड़ा ही नहीं । कृष्ण की स्वीकृति या अस्वीकृति पर मीरा के भाव आश्रित थे ही नहीं । मीरा ने कभी कृष्ण से कृष्ण को माँगा ही नहीं । वह सिर्फ कृष्णार्थ थी । कृष्ण तैयार नहीं थे । उनके लिये यह पहली घटना थी । हक्के बक्के रह गए । सारा ऐश्वर्य सारी विभूतियां सारी कलाएँ कृष्ण की मूल्यहीन सी रह गयी । स्वयं कृष्ण की कोई पूछ न रही । वंशी का धुन और कजरारे नैन धरे के धरे रह गये । मीरा ने कभी बुलाया ही नहीं , पुकारा ही नहीं । कोई प्रेम का आमंत्रण नही भेजा मीरा ने अपने प्रियतम को । जहर परोसा गया मीरा के आगे । मीरा उठाकर पी गयी ।कोई ना नुकर नहीं , कोई चीख पुकार नहीं , कोई सहायता का सन्देश नहीं भेजा अपने सर्वशक्तिमान प्रियतम को । कृष्ण हतप्रभ थे । अजीब सी पागल लड़की है ये ? मुझसे कभी मिली नहीं , मुझसे कभी कोई बात नहीं । न तो मेरा नर्तन देखा न ही वादन ? तो फिर मुझसे इम्प्रेस हुई कैसे ? न तो कभी पास रही जो सामीप्य से उपजा स्नेह समझता ? अजनबी से अजनबी का स्नेह ? मुझसे प्रेम और मेरी ही उसको जरुरत नहीं ? कृष्ण का कृष्णत्व छोटा हो रहा था । कृष्ण सिर्फ कृष्ण हो रहे थे ---न गिरिधर न चक्रधर न मुरलीधर ।। इतना हल्का कृष्ण अपने जीवन में कभी महसूस नहीं किये थे । पहली बार किसी ने कृष्ण का कुछ नहीं चाहा था ,कृष्ण को चाहा था !! पहली बार खुद को प्रेममय देखा । पहली बार मीरा के स्नेह से अभिभूत हुए थे । पहली बार किसी के प्रेम में परितुष्ट हुए थे । इस बार मीरा सी कोई दूसरी मीरा नहीं खड़ी कर पाये थे मायापति । दौड़ पड़े मीरा के आगे मीरा के पथ पर मीरा के पाँव के हिस्से का काँटा चुनने......!!!!!!! सभी मित्र को जो मुझे मित्र मानते हैं उनको भी जो नहीं मानते हैं उनको भी मित्रता दिवस की अनंत शुभकामनायें ...... ( sudhir Kumar Gupta )
Sudhir Kumar