Sudhir Kumar
राधा रानी की शक्ति 〰️〰️🔸🔸〰️〰️ गोवर्धन लीला के बाद समस्त ब्रजमंडल के कृष्ण के नाम की चर्चा होने लगी, सभी ब्रजवासी कृष्ण की जय-जयकार कर रहे थे और उनकी महिमा का गान कर रहे थे। . ब्रज के गोप-गोपियों के मध्य कृष्ण की ही चर्चा थी। . एक स्थान पर कुछ गोप और गोपियाँ एकत्रित थी और यही चर्चा चल रही थी तभी एक गोप मधुमंगल बोला इसमें कृष्ण की क्या विशेषता है, यह कार्य तो हम लोग भी कर सकते है। . वहां राधा रानी की सखी ललीता भी उपस्थित थी वह तुरंत बोल उठी ... . "हां हां देखी है तुम्हारी योग्यता, जब कृष्ण ने पर्वत उठाया था तो तुम सभी ने अपनी-अपनी लाठियां पर्वत के नीचे लगा थी ... . और कान्हा से हाथ हठा लेने के लिए कहा था, हाथ हठाना तो दूर कान्हा ने थोड़ी से अंगुली टेढ़ी की और तुम सब की लाठियां चटाचट टूट गई थी, . तब तुम सब मिलकर यही यही बोले थे कान्हा तुम्ही संभालो, तब कान्हा ने ही पर्वत संभाला था"... . यह सुनकर मधुमंगल बोला "हाँ हाँ मान लिया की कान्हा ने ही संभाला, किन्तु हम ने प्रयास तो किया तुमने क्या किया " . यह सुनकर ललिता बोली " हां हां देखी है तुम्हारे कान्हा की भी शक्ति, माना हमने कुछ नहीं किया किन्तु हमारी सखी राधारानी ने तो किया" . मधुमंगल बोला "अच्छा जी राधा रानी ने क्या करा तनिक यह तो बताओ" . ललीता ने उत्तर दिया "पर्वत तो हमारी राधारानी ने ही उठाया था, कृष्ण का तो बस नाम हो गया" . यह सुनकर सभी गोप सखा हंसने लगे और बोले "लो जी अब यह राधा रानी कहाँ से आ गई, पर्वत उठाया कान्हा ने, हाथ दुखे कान्हा के.... . पूरे सात दिन एक स्थान पर खड़े रहे कान्हा, ना भूंख की चिंता ना प्यास की, ना थकान का कोई भाव, ना कोई दर्द, सब कुछ किया कान्हा ने और बीच में आ गई राधारानी" . तब ललीता बोली.. लगता है जिस समय कान्हा ने पर्वत उठाया था उस समय तुम लोग कही और थे, अन्यथा तुमको भी पता चल जाता कि पर्वत तो हमारी राधारानी ने ही उठाया था" . या सुनकर सभी गोपसखा बोले "ऐसी प्रलयकारी स्थिति में कही और जा कर हमको क्या मरना था, एक कृष्ण ही तो हम सबका आश्रय थे, जिन्होंने सबके प्राणों की रक्षा की" . ललीता बोली "तब भी तुमको यह नहीं पता चला कि पर्वत हमारी राधारानी ने उठाया था" . सभी गोपसखा बोले "हमने तो ऐसा कुछ भी नहीं देखा" . तब ललीता बोली "अच्छा यह बताओ कि कान्हा ने पर्वत किस हाथ से उठाया था" . मधुमंगल बोला "कान्हा ने तो पर्वत अपने बायें हाथ से ही उठा दिया था, दायें हाथ की तो आवश्यकता ही नहीं पड़ी" . तब ललीता बोली.. तभी तो में कहती हूँ की पर्वत हमारी राधारानी ने उठाया, कृष्ण ने नहीं, यदि कृष्ण अपनी शक्ति से पर्वत उठाते तो वह दायें हाथ से उठाते... . किन्तु उन्होंने पर्वत बायें हाथ से उठाया, क्योकि किसी भी पुरुष का दायां भाग उसका स्वयं का तथा बायाँ भाग स्त्री का प्रतीक होता है, . जब कान्हा ने पर्वत उठाया तब उन्होंने श्री राधारानी का स्मरण किया और तब पर्वत उठाया, इसी कारण उन्होंने पर्वत बाएं हाथ से उठाया, . कृष्ण के स्मरण करने पर श्री राधा रानी ने उनकी शक्ति बन कर पर्वत को धारण किया।" . अब किसी भी बालगोपाल के पास ललीता के इस तर्क का कोई उत्तर नहीं था, सभी निरुत्तर हो गए और ललीता राधे-राधे गुनगुनाती वहां से चली गई। . यह सत्य है कि राधे रानी ही भगवान श्री कृष्ण की आद्यशक्ति है, जब भी भगवान कृष्ण ने कोई विशेष कार्य किया पहले अपनी शक्ति का स्मरण किया, . श्री राधा रानी कृष्ण की शक्ति के रूप में सदा कृष्ण के साथ रही, इसलिए कहा जाता है, कि श्री कृष्ण को प्राप्त करना है तो श्रीराधा रानी को प्रसन्न करना चाहिए। . जहाँ राधा रानी होंगी वहां श्री कृष्ण स्वयं ही चले आते हैं। यही कारण है कि भक्त लोग कृष्ण से पहले राधा का नाम लेते है। 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️
Sudhir Kumar
🚩🚩🚩संकटमोचन हनुमानाष्टक 🚩🚩🚩 🚩बाल समय रवि भक्षी लियो तब, तीनहुं लोक भयो अँधियारो I ताहि सो त्रास भयो जग को, यह संकट काहू सो जात न टारो II देवन आनि करी बिनती तब, छाड़ दियो रवि कष्ट निवारो I को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो II 🚩बालि की त्रास कपीस बसे गिरि, जात महा प्रभु पंथ निहारो I चौंकि महा मुनि श्राप दियो तब, चाहिये कौन बिचार बिचारो II कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के शोक निवारो I को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो II 🚩अंगद के संग लेन गये सिया, खोज कपीस यह बैन उचारो I जीवत ना बचिहौ हम सो जो, बिना सुधि लाये यहाँ पगु धारौ II हेरि थके तट सिन्धु सबै तब, लाये सिया सुधि प्राण उबारो I को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो II 🚩रावण त्रास दई सिया को तब, राक्षसि सों कहि शोक निवारो I ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनी चर मारो II चाहत सिया अशोक सों आगि सु, दें प्रभु मुद्रिका शोक निवारो I को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो II 🚩बाण लाग्यो उर लक्ष्मण के तब, प्राण तज्यो सुत रावण मारो I ले गृह वैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सो वीर उपारो II आनि सजीवन हाथ दई तब, लक्ष्मण के तुम प्राण उबारो I को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो II 🚩रावण युद्ध अजान कियो तब, नाग कि फाँस सबै सिर दारो I श्री रघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो II आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो I को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो II 🚩बंधु समेत जबै अहिरावण, लै रघुनाथ पातळ सिधारो I देविहिं पूजि भलि विधि सो बलि, देउ सबै मिलि मंत्र विचारो II जाय सहाय भयो तब ही, अहिरावण सैन्य समेत संघारो I को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो II 🚩काज किये बड़ देवन के तुम, वीर महाप्रभु देखि बिचारो I कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुम सों नहिं जात है टारो II बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होय हमारो I को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो II 🚩🚩दोहा लाल देह लाली लसे ,अरु धरि लाल लंगूर I बज्र देह दानव दलन,जय जय जय कपि सूर II
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