Sudhir Kumar
हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी हैं। जो भी बजरंगबली की सेवा करता है उसे अच्छी तरह से ज्ञात होना चाहिए की बजरंगबली प्रातःकाल से शाम को राम मंदिर के पट बंद होने तक प्रभु श्री राम की सेवा में रहते हैं अर्थात अपने भक्तों के पास रात के समय ही उपस्थित रहते हैं। रात का समय हनुमान उपासना और हनुमान जी के उपायों के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। रात को अगर ये उपाय किए जाएं तो हनुमान ही बहुत प्रसन्न होते हैं जिससे रोजगार में सफलता मिलने के साथ ही सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। वहीं जिन जातकों पुरूषों का विवाह नहीं हुआ है उन्हें ये उपाय अवश्य करने चाहिए। रात के समय करें ये काम :- सोने से पहले हनुमान जी के 12 नामों का जाप करें। इससे रोजगार की अश्यक प्राप्ति होगी। दिन के छठे प्रहर में अर्थात रात को 9 बजे के बाद हनुमान मंदिर में चमेली के तेल के तीन दीपक जलाएं इससे पराक्रम में वृद्धि होगी। रात में हनुमान जी पर 11 लड्डू चढ़ाकर गरीबों में बांटने से आर्थिक संकट दूर होते हैं। दिन के छठे प्रहर में हनुमान मंदिर में उत्तर मुखी बैठकर इस चौपाई का जाप करने से शिक्षा में सफलता प्राप्त होती है। बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरों पवन कुमार। बल बुद्धि विद्धा देहू मोहि हरहू कलेष विकार।। पान के पत्ते पर लाल चंदन से सीयाराम लिख कर हनुमनाजी पर अर्पित करने से मनचाहा जीवनसाथी मिलता है।
Sudhir Kumar
वाराणसी - एक यंत्र है, यह एक असाधारण यंत्र है। ऐसा यंत्र इससे पहले या फिर इसके बाद कभी नहीं बना। इसे केवल एक नगर समझने का भूल न करना। मानव शरीर में जैसे नाभी का स्थान है, वैसे ही पृथ्वी पर वाराणसी का स्थान है। शरीर के प्रत्येक अंग का संबंध नाभी से जुड़ा है और पृथ्वी के समस्त स्थान का संबंध भी वाराणसी से जुड़ा है। इस यंत्र का निर्माण एक ऐसे विशाल और भव्य मानव शरीर को बनाने के लिए किया गया, जिसमें भौतिकता को अपने साथ लेकर चलने की मजबूरी न हो, शरीर को साथ लेकर चलने से आने वाली जड़ता न हो और जो हमेशा सक्रिय रह सके... और जो सारी आध्यात्मिक प्रक्रिया को अपने आप में समा ले। काशी की रचना सौरमंडल की तरह की गई है, क्योंकि हमारा सौरमंडल कुम्हार के चाक की तरह है। आपके अपने भीतर 114 चक्रों में से 112 आपके भौतिक शरीर में हैं, लेकिन जब कुछ करने की बात आती है, तो केवल 108 चक्रों का ही इस्तेमाल आप कर सकते हैं। इसमें एक खास तरीके से मंथन हो रहा है। यह घड़ा यानी मानव शरीर इसी मंथन से निकल कर आया है, इसलिए मानव शरीर सौरमंडल से जुड़ा हुआ है और ऐसा ही मंथन इस मानव शरीर में भी चल रहा है। सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी सूर्य के व्यास से 108 गुनी है। आपके अपने भीतर 114 चक्रों में से 112 आपके भौतिक शरीर में हैं, लेकिन जब कुछ करने की बात आती है, तो केवल 108 चक्रों का ही इस्तेमाल आप कर सकते हैं। अगर आप इन 108 चक्रों को विकसित कर लेंगे, तो बाकी के चार चक्र अपने आप ही विकसित हो जाएंगे। हम उन चक्रों पर काम नहीं करते। शरीर के 108 चक्रों को सक्रिय बनाने के लिए 108 तरह की योग प्रणालियां है। पूरे काशी यनी बनारस शहर की रचना इसी तरह की गई थी। यह पांच तत्वों से बना है, और आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि शिव के योगी और भूतेश्वर होने से, उनका विशेष अंक पांच है। इसलिए इस स्थान की परिधि पांच कोश है। इसी तरह से उन्होंने सकेंद्रित कई सतहें बनाईं। यह आपको काशी की मूलभूत ज्यामिति बनावट दिखाता है। गंगा के किनारे यह शुरू होता है, और ये सकेंद्रित वृत परिक्रमा की व्याख्यां दिखा रहे हैं। सबसे बाहरी परिक्रमा की माप 168 मील है। यह शहर इसी तरह बना है और विश्वनाथ मंदिर इसी का एक छोटा सा रूप है। असली मंदिर की बनावट ऐसी ही है। यह बेहद जटिल है। इसका मूल रूप तो अब रहा ही नहीं। वाराणसी को मानव शरीर की तरह बनाया गया था यहां 72 हजार शक्ति स्थलों यानी मंदिरों का निर्माण किया गया। एक इंसान के शरीर में नाडिय़ों की संख्या भी इतनी ही होती है। इसलिए उन लोगों ने मंदिर बनाये, और आस-पास काफी सारे कोने बनाये - जिससे कि वे सब जुड़कर 72,000 हो जाएं। यहां 468 मंदिर बने, क्योंकि चंद्र कैलंडर के अनुसार साल में 13 महीने होते हैं, 13 महीने और 9 ग्रह, चार दिशाएं - इस तरह से तेरह, नौ और चार के गुणनफल के बराबर 468 मंदिर बनाए गए। तो यह नाडिय़ों की संख्या के बराबर है। यह पूरी प्रक्रिया एक विशाल मानव शरीर के निर्माण की तरह थी। इस विशाल मानव शरीर का निर्माण ब्रह्मांड से संपर्क करने के लिए किया गया था। इस शहर के निर्माण की पूरी प्रक्रिया ऐसी है, मानो एक विशाल इंसानी शरीर एक वृहत ब्रह्मांडीय शरीर के संपर्क में आ रहा हो। काशी बनावट की दृष्टि से सूक्ष्म और व्यापक जगत के मिलन का एक शानदार प्रदर्शन है। कुल मिलाकर, एक शहर के रूप में एक यंत्र की रचना की गई है। रोशनी का एक दुर्ग बनाने के लिए, और ब्रह्मांड की संरचना से संपर्क के लिए, यहां एक सूक्ष्म ब्रह्मांड की रचना की गई। ब्रह्मांड और इस काशी रुपी सूक्ष्म ब्रह्मांड इन दोनों चीजों को आपस में जोडऩे के लिए 468 मंदिरों की स्थापना की गई। मूल मंदिरों में 54 शिव के हैं, और 54 शक्ति या देवी के हैं। अगर मानव शरीर को भी हम देंखे, तो उसमें आधा हिस्सा पिंगला है और आधा हिस्सा इड़ा। दायां भाग पुरुष का है और बायां भाग नारी का। यही वजह है कि शिव को अर्धनारीश्वर के रूप में भी दर्शाया जाता है - आधा हिस्सा नारी का और आधा पुरुष का। यहां 468 मंदिर बने, क्योंकि चंद्र कैलंडर के अनुसार साल में 13 महीने होते हैं, 13 महीने और 9 ग्रह, चार दिशाएं - इस तरह से तेरह, नौ और चार के गुणनफल के बराबर 468 मंदिर बनाए गए। आपके स्थूल शरीर का 72 फीसदी हिस्सा पानी है, 12 फीसदी पृथ्वी है, 6 फीसदी वायु है और 4 फीसदी अग्नि। बाकी का 6 फीसदी आकाश है। सभी योगिक प्रक्रियाओं का जन्म एक खास विज्ञान से हुआ है, जिसे भूत शुद्धि कहते हैं। इसका अर्थ है अपने भीतर मौजूद तत्वों को शुद्ध करना। अगर आप अपने मूल तत्वों पर कुछ अधिकार हासिल कर लें, तो अचानक से आपके साथ अद्भुत चीजें घटित होने लगेंगी। मैं आपको हजारों ऐसे लोग दिखा सकता हूं, जिन्होंने बस कुछ साधारण भूतशुद्धि प्रक्रियाएं करते हुए अपनी बीमारियों से मुक्ति पाई है। इसलिए इसके आधार पर इन मंदिरों का निर्माण किया गया।
Sudhir Kumar