Sudhir Kumar
माथ के बिंदिया चमके गोरी, हाथ के चुरी हा खनके ओ । बड़ मनभावन रूप हे रानी, निकले तै बन ठन के ओ ।। महके तोर अंग हा स्वीटी , लकड़ी जइसे चंदन के ओ । करिया करिया बाल हावय, जइसे घटा सावन के ओ ।। हिरनी जइसे चाल हे तोर, पांव के पईरी हा छनके ओ । तोर सुघराई म चंदा लजाए, सुरुज लुकाए गगन के ओ।। तीर मा आना ए मोर गोरी , तोला बात बताहुं मन के ओ। मोर अंगना तोर रस्ता देखय, आ जाना दुल्हिन बनके ओ।। हिरदे भितरी तोला बसाके , राखे हाववं मै जतन के ओ। मोर छाती मा कान लगा के, बात समझ धड़कन के ओ।। कृष्णा पारकर सीपत बिलासपुर छ. ग.
Sudhir Kumar
🙏🌺🌺 नमों नाथ जी को आदेश 🌺🌺🙏 🙏🌺ॐ सद्गुरू देवाय अघोरेश्वराय नमों नमः🌺🙏 रविवार 21-07-2019 (अघोरी और अघोर पंथ भाग 106 ) भक्तराज भृंगी जी की कथा भाग 2 देवादि महादेव जी के गणों में से एक गण हैं भृंगी जी, एक बार महादेव जी के परम भक्त श्रृंगी ऋषि कैलाश पर्वत पर अपने आराध्य श्री महादेव जी की परिक्रमा करने हेतु पहुँचे, सदैव की भाँति श्री महादेव जी के बाईं जंघा पर आदि शक्ति महामाया श्री जगदंबा जी स्वयं विराजमान थीं, श्री महादेव जी समाधि में लीन थे और श्री जगदंबा जी चैतन्य थीं, श्री जगदंबा जी के नेत्र खुले हुये थे, पर भृंगी ऋषि जी तो आये थे अपने आराध्य श्री श्री महादेव जी की परिक्रमा करने हेतु, परन्तु श्री महादेव जी तो ध्यानमग्न थे, परन्तु भृंगी जी तो अपने आराध्य श्री महादेव जी के प्रेम में मतवाले हुये जा रहे थे, भृंगी जी केवल और केवल श्री महादेव जी की ही परिक्रमा करना चाहते थे, क्योंकि ब्रह्मचर्य पर भृंगी जी की परिभाषा ही कुछ अलग थी, पर क्या करें आदि शक्ति महामाया महादेवी पार्वती जी तो स्वयं शिवजी के वामांग में विराजमान हैं, भृंगी जी भी अपना उतावलापन रोक ही नहीं पा रहे थे, साहस इतना बढ़ गये की भृंगी जी ने आदि शक्ति महामाया भगवती जगत जननी जगदंबा से अनुरोध कर दिया की वह शिवजी से अलग होकर बैठ जायें ताकि मैं महादेव जी की परिक्रमा कर सकूँ, आदि शक्ति महामाया जगदंबा महादेवी जी अविलम्ब समझ गईं की, यह भृंगी ऋषि है तो महा तपस्वी लेकिन इसे अभी पूर्ण ज्ञान नहीं हुआ है, अभी भृंगी ऋषि का यह ज्ञान अधूरा का है, इसलिये आदि शक्ति महादेवि जी ने भी भृंगी ऋषि की बात को अनसुना कर दिया, परन्तु भृंगी ऋषि तो भृंगी ऋषि ठहरे वो भी हठी, भृंगी ऋषि हठ में थे इतने चूर थे की कुछ भी समझने और सुनने के लिये तैयार ही नहीं थे, भृंगी जी ने फिर से महादेवी पार्वती जी से कहा की आप कुछ देर के लिये हट जायें, मैं श्री महादेव जी की परिक्रमा कर लूँ, आदि शक्ति महामाया भगवती महादेवी माँ पार्वती जी ने इस बात पर आपत्ति जताते हुये कहा की, हे भृंगी ऋषि अपने यह अनुचित शब्द बोलना शीघ्र बंद करो, आदि शक्ति महामाया भगवती महादेवी श्री जगदंबा जी ही श्री महादेव जी की ही वाम शक्ति हैं, श्री महादेवी जी श्री महादेव जी से पृथक होने के लिये भला कैसे तैयार होतीं, आदि शक्ति महामाया महादेवी जी ने भृंगी ऋषि को कई तरह से समझाने का प्रयास किया की, प्रकृति और पुरुष के संबंधों की व्याख्या के वेदों में वर्णित ढेर सारे उदाहरण दिये, परंतु भृंगी ऋषि तो ठहरे महा हठी और महा हठी की बुद्धि तो वैसे भी आधी हो जाती है। आदि शक्ति महामाया भगवती महादेवी माता जी के द्वारा दिये हुये ज्ञान-उपदेश भृंगी ऋषि के बुद्धि और विवेक में नहीं उतरे, भृंगी ऋषि की बुद्धि सृष्टि के इस रहस्य को समझने के लिये बिल्कुल भी तैयार ही नहीं थी, हठी भृंगी ऋषि ने तो केवल और केवल श्री महादेव जी की परिक्रमा करने की ही ठान रखी थी, आदि शक्ति महामाया भगवती श्री महादेवी जी ने सोचा की इस हठी अज्ञानी को समझाने का कुछ भी लाभ नहीं होगा इसे अनदेखा कर देना ही ठीक रहेगा आदि शक्ति महामाया भगवती जगत जननी जगदंबा महादेवी श्री पार्वती जी श्री महादेव जी से पृथक अलग न हुईं। शेष कल................................................ ✍️ जिस-जिस भक्तराज मित्र को मेरे लेखों से आपत्ति हो वह सभी भक्तराज मित्र मुझसे बिना वाद विवाद किये मुझे तुरंत अविलम्ब ब्लाॅक करके आगे चलते बनें धन्यवाद। आप सभी भक्तराज मित्रों पर व आपके परिवार पर आदि शक्ति महामाया भगवती जगत जननी श्री श्री श्मशान वासिनी महाकाली जी की दया दृष्टि सदैव बनी रहे बहुत बहुत शुभ मंगल कामनाओं के साथ (नाथ जी) 🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🙏
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