Sudhir Kumar
इक्यावन शक्तिपीठों में प्रमुख माँशारदा देवी मैहर वाली की पावन कथा !!!!!!! मैहर एक शहर और मध्य प्रदेश के भारतीय राज्य में सतना जिले में एक नगर पालिका है| मैहर में श्रद्धेय देवी माँ शारदा के मंदिर मैहर की त्रिकुटा पहाड़ी पर स्थित है| मैहर की माता शारदा, मध्यप्रदेश के चित्रकूट से लगे सतना जिले में मैहर शहर की लगभग 600 फुट की ऊंचाई वाली त्रिकुटा पहाड़ी पर मां दुर्गा के शारदीय रूप श्रद्धेय देवी माँ शारदा का मंदिर स्थित है, जो मैहर देवी माता के नाम से सुप्रसिद्ध हैं | यहां श्रद्धालु माता का दर्शन कर आशीर्वाद लेने उसी तरह पहुंचते हैं जैसे जम्मू में मां वैष्णो देवी का दर्शन करने जाते हैं | मां मैहर देवी के मंदिर तक पहुंचने के लिए 1063 सीढ़ियां तय करनी पड़ती है | महा वीर आला-उदल को वरदान देने वाली मां शारदा देवी को पूरे देश में मैहर की शारदा माता के नाम से जाना जाता है। अब रोपवे बनने से यह कठिनाई दूर हो गयी है। इनकी उत्पत्ति के पीछे एक पौराणिक कहानी है जिसमें कहा गया है कि सम्राट दक्ष प्रजापति की पुत्री सती, भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी | लेकिन राजा दक्ष शिव को भगवान नहीं, भूतों और अघोरियों का साथी मानते थे और इस विवाह के पक्ष में नहीं थे | फिर भी सती ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध जाकर भगवान शिव से विवाह कर लिया | एक बार राजा दक्ष ने 'बृहस्पति सर्व' नामक यज्ञ रचाया, उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता भगवान महादेव को नहीं बुलाया | महादेव की पत्नी और दक्ष की पुत्री सती इससे बहुत आहत हुई और यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से भगवान शिव को आमंत्रित न करने का कारण पूछा, इस पर दक्ष प्रजापति ने भरे समाज में भगवान शिव के बारे में अपशब्द कहा | तब इस अपमान से पीड़ित होकर सती मौन हो उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बैठ गयी और भगवान शंकर के चरणों में अपना ध्यान लगा कर योग मार्ग के द्वारा वायु तथा अग्नि तत्व को धारण करके अपने शरीर को अपने ही तेज से भस्म कर दियाब | भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया और यज्ञ का नाश हो गया | भगवान शंकर ने माता सती के पार्थिव शरीर को कंधे पर उठा लिया और गुस्से में तांडव करने लगे | ब्रह्मांड की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने ही सती के अंग को बावन भागों में विभाजित कर दिया | जहाँ-जहाँ सती के शव के विभिन्न अंग और आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्ति पीठों का निर्माण हुआ | उन्हीं में से एक शक्ति पीठ है मैहर देवी का मंदिर, जहां मां सती का हार गिरा था | मैहर का मतलब है, मां का हार, इसी वजह से इस स्थल का नाम मैहर पड़ा | अगले जन्म में सती ने हिमाचल राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिवजी को फिर से पति रूप में प्राप्त किया | इस तीर्थस्थल के सन्दर्भ में दूसरी भी दन्तकथा प्रचलित है। कहते हैं आज से 200 साल पहले मैहर में महाराज दुर्जन सिंह जुदेव राज्य करते थे। उन्हीं कें राज्य का एक ग्वाला गाय चराने के लिए जंगल में आया करता था। इस घनघोर भयावह जंगल में दिन में भी रात जैसा अंधेरा छाया रहता था। तरह-तरह की डरावनी आवाजें आया करती थीं। एक दिन उसने देखा कि उन्हीं गायों के साथ एक सुनहरी गाय कहां से आ गई और शाम होते ही वह गाय अचानक कहीं चली गई। दूसरे दिन जब वह इस पहाड़ी पर गायें लेकर आया तो देखता है कि फिर वही गाय इन गायों के साथ मिलकर घास चर रही है। तब उसने निश्चय किया कि शाम को जब यह गाय वापस जाएगी, तब उसके पीछे-पीछे जाएगा। गाय का पीछा करते हुए उसने देखा कि वह ऊपर पहाड़ी की चोटी में स्थित एक गुफा में चली गई और उसके अंदर जाते ही गुफा का द्वार बंद हो गया। वह वहीं गुफा द्वार पर बैठ गया। उसे पता नहीं कि कितनी देर कें बाद गुफा का द्वार खुला। लेकिन उसे वहां एक बूढ़ी मां के दर्शन हुए। तब ग्वाले ने उस बूढ़ी महिला से कहा, ‘माई मैं आपकी गाय को चराता हूं, इसलिए मुझे पेट के वास्ते कुछ मिल जाए। मैं इसी इच्छा से आपके द्वार आया हूं।’ बूढ़ी माता अंदर गई और लकड़ी के सूप में जौ के दाने उस ग्वाले को दिए और कहा, ‘अब तू इस भयानक जंगल में अकेले न आया कर। ’ वह बोला, ‘माता मेरा तो जंगल-जंगल गाय चराना ही काम है। लेकिन मां आप इस भयानक जंगल में अकेली रहती हैं? आपको डर नहीं लगता।’ तो बूढ़ी माता ने उस ग्वाले से हंसकर कहा- बेटा यह जंगल, ऊंचे पर्वत-पहाड़ ही मेरा घर हैं, में यही निवास करती हूं। इतना कह कर वह गायब हो गई। ग्वाले ने घर वापस आकर जब उस जौ के दाने वाली गठरी खोली, तो वह हैरान हो गया। जौ की जगह हीरे-मोती चमक रहे थे। उसने सोचा- मैं इसका क्या करूंगा। सुबह होते ही महाराजा के दरबार में पेश करूंगा और उन्हें आप बीती कहानी सुनाऊंगा। दूसरे दिन भरे दरबार में वह ग्वाला अपनी फरियाद लेकर पहुंचा और महाराजा के सामने पूरी आप
Sudhir Kumar
. "#_सावन_का_महीना_जय_भोलेनाथ_"..... बहुत से लोग तो कहते हैं कि ईश्वर है ही नहीं लोग कहते हैं यदि वो है तो उनको दिखाओ कि वो कहाँ हैं ? ईश्वर को देखा तो जा सकता है लेकिन ईश्वर को दिखाया नहीं जा सकता है। एक बार सन्त के पास कोई जिज्ञासु आया और उस सन्त को कहा कि_ महाराज तुम ईश्वर की बात करते हो_ तो मुझे दिखाओ कहाँ है_ तुम्हारा भगवान ? _मुझे नजर क्यों नहीं आता ? सन्त ने कहा कि भइया सन्त तो अनुभव की चीज है_ मैं तुम्हें कैसे दिखाऊँ ? मैं अनुभव कर सकता हूँ_ मैं उनको देख सकता हूँ _ मेरे भजन से प्रसन्न होकर वो मुझे अपनी झलक दिखाते हैं पर मैं तुझे कैसे दिखाऊँ ? उस जिज्ञासु को ये सब बातें अच्छी नहीं लगी_ उसने हठ करते हुए सन्त को कहा_ कि मुझे ये सब मत बोलो_ ये ज्ञान की बातें मुझे नहीं सुननी_ तुम दिखा सकते हो तो दिखाओ कहाँ है तुम्हारा ईश्वर.. ? सन्त ने उसे बहुत समझाया_ भजन की साधना की बात बताई पर उसको कुछ समझ ही नहीं आता वो बार बार कहता कि_ तुम मुझे अपना ईश्वर दिखाओ, कहाँ है तुम्हारा भगवान,... जब वह किसी तरह नहीं माना_ तो सन्त ने तुरन्त पास में पड़ी अपनी लाठी उठाई _और उसके पैर पर जोर से दे मारी। जितनी जोर से लाठी पड़ी _उतने ही जोर से वह दर्द से तड़प उठा। चीखने लग गया, हाय मैं मर गया, हाय मेरे चोट लग गई, बड़ी तकलीफ होती है, बड़ा दर्द होता है। जब उसने ये बातें कहीं तो सन्त ने उसको हँसते हुए पूछा कि दिखा कहाँ है तेरा दर्द ? दिखा मुझे कहाँ है ? वो रोता-रोता तड़पता-तड़पता पीड़ा में बोला अरे महाराज ! दर्द को तो महसूस किया जा सकता है, कोई दिखाया थोड़ी जा सकता है मैं दिखाऊँ कैसे कि कहाँ है मेरा दर्द। सन्त ने हंसकर कहा पागल इसी तरह से परमात्मा को दिखाया नहीं जा सकता, पर उसको देखा जा सकता है उसका दर्शन किया जा सकता है। जिस पर वो कृपा कर दें उसको उनका दर्शन हो जाता है। इस प्रकार संत के समझाने पर_ वह मानव मंदिर का भक्त बन गया_ रोज मंदिर में आकर मंदिर की सफाई करता_ सवेरे शाम काम कर के चला जाता एक दिन उसे बोध हुआ कि_ ईश्वर उनके सामने ही खड़े हुए हैं_ "बस श्रद्धा होनी चाहिए".... . "#_जय_माता_दी_जय_भोलेनाथ_"
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