झाड़ू से सम्बंधित दो शब्द
■ झाड़ू को लक्ष्मी जी का स्वरूप माना गया है इसलिए झाड़ू पर पाँव लगने पर हमारे बुजुर्ग नाराज होते थे ।
■ झाड़ू को हमेशा दक्षिण -पश्चिम की दिशा मे रखे ।
■ झाड़ू हमेशा सोमवार को ही खरीदे ।
■ शनिवार को झाड़ू कभी न लाये ।
■ दिपावली पर एक नया झाड़ू अवश्य ही लाये ।
■ नये घर या फ्लैट का गृहप्रवेश हो तो, झाड़ू अवश्य ही नया होना चाहिए ।
■ संध्या के समय घर मे झाड़ू न लगाये ।
■ झाड़ू सोमवार - बुधवार - शुक्रवार को निर्विघ्न ला सकते है ।
■ झाड़ू पुराना होने पर तत्काल ही, नया झाड़ू लेकर आये ।
■ अपना झाडू किसी और को न दे ।
जय श्री गणेश जी ।
कैसे तेरा चुकाऊ उपकार गुरु जी प्यारे
मुझपे कर्म है तेरा बेसुमार गुरु जी प्यारे,
कैसे तेरा चुकाऊ उपकार गुरु जी प्यारे,
इक आस जग गई है तुम साथ हो हमारे,
सब जानते हो तुम तो कैसे थे दिन गुजारे,
हर वक़्त ही दिया है मेरा साथ गुरु जी प्यारे,
मुझपे कर्म है तेरा बेसुमार गुरु जी प्यारे,
कैसे तेरा चुकाऊ उपकार गुरु जी प्यारे,
तकदीर क्या बदल दे इतहास वो जहां का,
सब भेद जानते है गुरु जी को याहा का,
वो तर गया बना जो सेवा दार गुरु जी प्यारे,
मुझपे कर्म है तेरा बेसुमार गुरु जी प्यारे,
कैसे तेरा चुकाऊ उपकार गुरु जी प्यारे,
तेरी एक नजर हुई तो हर बात बन गई है,
चरणों को तेरे छू कर पावन हुई है दुगरी है,
वहा रेहमतो की है बरसात गुरु जी आये,
मुझपे कर्म है तेरा बेसुमार गुरु जी प्यारे,
कैसे तेरा चुकाऊ उपकार गुरु जी प्यारे,
शिव सदा सहाई गुरु जी सदा सहाई,
वो ढोल ता कभी न भरे मंदिर जो भी आये,
माहि को तारो आया इस बार गुरु जी प्यारे,
सुमंगल को तारो आया इस बार गुरु जी प्यारे,
मुझपे कर्म है तेरा बेसुमार गुरु जी प्यारे,
कैसे तेरा चुकाऊ उपकार गुरु जी प्यारे,
बृहस्पति व्रत कथा और श्री बृहस्पति देव की पूजा की कहानी
हिन्दू धर्म में बृहस्पतिवार के दिन श्री हरी विष्णु की पूजा की जाती है। माना जाता है इस दिन श्रद्धापूर्वक श्री हरी का व्रत और पूजन करने से इच्छित फल की प्राप्ति होती है। इसके अलावा जल्द शादी करने की इच्छा रखे वालो के लिए भी ये व्रत बहतु लाभदायक होता है। अग्निपुराणानुसार अनुराधा नक्षत्र युक्त गुरुवार से प्रारंभ करके सात गुरुवार तक नियमित रूप से व्रत करने से बृहस्पति ग्रह की पीड़ा से मुक्ति मिलती है।
इसके अलावा घर में सुख शांति और श्री विष्णु भगवान् का आशीर्वाद भी मिलता है। लेकिन केवल पूजन करने और व्रत रखने से सम्पूर्ण फल नहीं मिलते। व्रत के साथ-साथ कथा का होना भी बेहद महत्वपूर्ण है। इसीलिए इस व्रत में भी बृहस्पति व्रत कथा का श्रवण किया जाता है। गुरुवार व्रत कथा निम्न प्रकार से है :-
बृहस्पतिवार व्रत कथा
प्राचीन समय की बात है। एक नगर में एक बड़ा व्यापारी रहता था। वह जहाजों में माल लदवाकर दूसरे देशों में भेजा करता था। वह जिस प्रकार अधिक धन कमाता था उसी प्रकार जी खोलकर दान भी करता था, परंतु उसकी पत्नी अत्यंत कंजूस थी। वह किसी को एक दमड़ी भी नहीं देने देती थी।
एक बार सेठ जब दूसरे देश व्यापार करने गया तो पीछे से बृहस्पतिदेव ने साधु-वेश में उसकी पत्नी से भिक्षा मांगी। व्यापारी की पत्नी बृहस्पतिदेव से बोली हे साधु महाराज, मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूं। आप कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मेरा सारा धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रह सकूं। मैं यह धन लुटता हुआ नहीं देख सकती।
बृहस्पतिदेव ने कहा, हे देवी, तुम बड़ी विचित्र हो, संतान और धन से कोई दुखी होता है। अगर अधिक धन है तो इसे शुभ कार्यों में लगाओ, कुंवारी कन्याओं का विवाह कराओ, विद्यालय और बाग-बगीचों का निर्माण कराओ। ऐसे पुण्य कार्य करने से तुम्हारा लोक-परलोक सार्थक हो सकता है, परन्तु साधु की इन बातों से व्यापारी की पत्नी को ख़ुशी नहीं हुई। उसने कहा- मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं है, जिसे मैं दान दूं।
साधु वेश धारी बृहस्पति देव का धन नष्ट होने के लिए सेठानी को दिया गया उत्तर
तब बृहस्पतिदेव बोले “यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो तुम एक उपाय करना। सात बृहस्पतिवार घर को गोबर से लीपना, अपने केशों को पीली मिटटी से धोना, केशों को धोते समय स्नान करना, व्यापारी से हजामत बनाने को कहना, भोजन में मांस-मदिरा खाना, कपड़े अपने घर धोना। ऐसा करने से तुम्हारा सारा धन नष्ट हो जाएगा। इतना कहकर बृहस्पतिदेव अंतर्ध्यान हो गए।
व्यापारी की पत्नी ने बृहस्पति देव के कहे अनुसार सात बृहस्पतिवार वैसा ही करने का निश्चय किया। केवल तीन बृहस्पतिवार बीते थे कि उसी समस्त धन-संपत्ति नष्ट हो गई और वह परलोक सिधार गई। जब व्यापारी वापस आया तो उसने देखा कि उसका सब कुछ नष्ट हो चुका है। उस व्यापारी ने अपनी पुत्री को सांत्वना दी और दूसरे नगर में जाकर बस गया। वहां वह जंगल से लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेचता। इस तरह वह अपना जीवन व्यतीत करने लगा।
पुत्री की इच्छा पर सेठ गया जंगल
एक दिन उसकी पुत्री ने दही खाने की इच्छा प्रकट की लेकिन व्यापारी के पास दही खरीदने के पैसे नहीं थे। वह अपनी पुत्री को आश्वासन देकर जंगल में लकड़ी काटने चला गया। वहां एक वृक्ष के नीचे बैठ अपनी पूर्व दशा पर विचार कर रोने लगा। उस दिन बृहस्पतिवार था। तभी वहां बृहस्पतिदेव साधु के रूप में सेठ के पास आए और बोले “हे मनुष्य, तू इस जंगल में किस चिंता में बैठा है?”
तब व्यापारी बोला “हे महाराज, आप सब कुछ जानते हैं।” इतना कहकर व्यापारी अपनी कहानी सुनाकर रो पड़ा। बृहस्पतिदेव बोले “देखो बेटा, तुम्हारी पत्नी ने बृहस्पति देव का अपमान किया था इसी कारण तुम्हारा यह हाल हुआ है लेकिन अब तुम किसी प्रकार की चिंता मत करो। तुम गुरुवार के दिन बृहस्पतिदेव का पाठ करो। दो पैसे के चने और गुड़ को लेकर जल के लोटे में शक्कर डालकर वह अमृत और प्रसाद अपने परिवार के सदस्यों और कथा सुनने वालों में बांट दो। स्वयं भी प्रसाद और चरणामृत लो। भगवान तुम्हारा अवश्य कल्याण करेंगे।”
साधु ने दिया व्यापारी को आर्शीवाद
साधु की बात सुनकर व्यापारी बोला “महाराज। मुझे तो इतना भी नहीं बचता कि मैं अपनी पुत्री को दही लाकर दे सकूं।” इस पर साधु जी बोले “तुम लकड़ियां शहर में बेचने जाना, तुम्हें लकड़ियों के दाम पहले से चौगुने मिलेंगे, जिससे तुम्हारे सारे कार्य सिद्ध हो जाएंगे।”
लकड़हारे ने लकड़ियां काटीं और शहर में बेचने के लिए चल पड़ा। उसकी लकड़ियां अच्छे दाम में बिक गई जिससे उसने अपनी पुत्री के लिए दही लिया और गुरुवार की कथा हेतु चना, गुड़ लेकर कथा की और प्रसाद बांटकर स्वयं भी खाया। उसी दिन से उसकी सभी कठिनाइयां दूर होने लगीं, परंतु अगले बृहस्पतिवार को वह कथा करना भूल गया।
अगले दिन वहां के राजा ने एक बड़े यज्ञ का आयोजन कर पूरे नगर के लोगों के लिए भोज का आयोज