Sudhir Kumar

हनुमान जी से सम्बंधित उपाय शीघ्र फल देते है। 1. सरसों के तेल के दीपक में लौंग डालें और ये दीपक हनुमानजी के सामने जलाएं और आरती करें। इस उपाय से सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। 2. किसी मंदिर जाएं और वहां एक नारियल पर स्वस्तिक बनाएं। इसके बाद ये नारियल हनुमान जी को अर्पित करें। साथ ही हनुमान चालीसा का पाठ करें। इससे बुरा समय दूर होता हैं। 3..हनुमान जयंती पर सूर्यास्त के बाद हनुमानजी के सामने चौमुखा दीपक जलाएं। चौमुखा दीपक यानी दीपक में चार बतियां रखकर चारों और जलाना है। इस उपाय से घर-परिवार की सभी परेशानियां खत्म हो जाएंगी। 4. यदि आप विधिवत पूजा नहीं कर पा रहे हैं तो हनुमानजी को लाल, पीले फूल जैसे कमल, गुलाब, गेंदा या सूर्यमुखी चढ़ा दें। इस उपाय से भी सभी सुख प्राप्त होते हैं। 5. हनुमान जयंती पर पारे से बनी हनुमान जी की प्रतिमा की पूजा करें। साथ ही, ॐ रामदूताय नमः मन्त्र का जप कम से कम 108 बार करें। मंत्र जप के लिए रुद्राक्ष की माला का उपाय करें। इस उपाय से सभी कष्ट दूर होते हैं। 6. हनुमानजी को गाय के शुद्ध घी से बना प्रसाद चढ़ाएं। ये प्रसाद भक्तों में बाटें और खुद भी ग्रहण करें। इस उपाय से हनुमानजी प्रसन्न होते हैं और दुःख दूर करते हैं। 7. हनुमानजी को लाल लंगोट चढ़ाएं। साथ ही, सिंदूर भी चढ़ाएं और चमेली के तेल का दीपक जलाएं। इस उपाय से हर काम में सफलता मिलेगी। 8. हनुमानजी की तस्वीर घर में पवित्र स्थान पर इस तरह लगाएं कि हनुमानजी का मुंह दक्षिण दिशा की और हो। इस उपाय से शत्रुओं पर विजय मिलेगी और धन लाभ होगा। 9. हनुमान जी का विशेष श्रृंगार करें। सिंदूर और चमेली के तेल से चोला चढ़ाएं। इस उपाय से सभी मनोकामना पूरी हो जाती है। 10. दुखों से मुक्ति के लिए पीपल के 11 पत्तें लें और साफ़ पानी से धो लें। इन पत्तों पर चंदन से या कुमकुम से श्रीराम नाम लिखें। पत्तों की माला बनाकर हनुमनजी को चढ़ाएं। 11. बनारसी पान लगवाकर हनुमनजी को चढ़ाएं। ऐसा करने से हनुमानजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। 12. किसी भी हनुमान मंदिर में काली उड़द के 11 दाने, सिंदूर, चमेली का तेल, फूल, प्रसाद आदि चढ़ाएं। हनुमान चालीसा का पाठ करें। इस उपाय से कुंडली के दोष दूर होंगें। 13. एक नारियल पर सिंदूर, लाल धागा, चावल चढ़ाएं और नारियल की पूजा करें। इसके बाद ये नारियल हनुमान जी को चढ़ा दें। इससे धन लाभ के योग बन सकते हैं। 14. काली गाय को रोटी खिलाएं। पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं। दीपक में काली उड़द के 3 दाने भी डालें। ये उपाय बड़ी परेशानियों से भी बचा सकता हैं। 15. हनुमान मंदिर में ध्वजा यानी झंडे का दान करें बंदरों को चने खिलाएं। इससे हनुमानजी शीघ्र प्रसन्न होते हैं ।

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. 🌹🌳🚩श्री हनुमानकथा 🚩🌳🌹 एक दिन हनुमानजी जब , सीताजी की शरण में आए.! नैनों में जल भरा हुआ है , बैठ गए शीश झुकाए.!! सीता जी ने पूछा उनसे , कहो लाड़ले बात क्या है.! किस कारण ये छाई उदासी , नैनों में क्यों नीर भरा है.!! हनुमान जी बोले , मैया आपनें कुछ वरदान दिए हैं.! अजर अमर की पदवी दी है और बहुत सम्मान दिए हैं.!🌹🌹🌹🌹🌹🇮🇳🌹🌹🌹 अब मैं उन्हें लौटानें आया हूँ , मुझे अमर पद नहीं चाहिए.! दूर रहूं मैं श्री चरणों से , ऐसा जीवन नहीं चाहिए.!! 🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳 सीता जी मुस्काकर बोली , बेटा ये क्या बोल रहे हो.! अमृत को तो देव भी तरसे , तुम काहे को डोल रहे हो.! 🌹🌹🌹🌹🌹🌹 इतने में श्रीराम प्रभु आ गए और बोले.! क्या चर्चा चल रही है , मां और बेटे में.!! सीताजी बोली सुनो नाथ जी.! ना जाने क्या हुआ हनुमान को.! पदवी अजर - अमर , लौटानें आया है ये मुझको.!! 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 राम जी बोले क्यों बजरंगी , ये क्या लीला नई रचाई.! कौन भला छोड़ेगा , अमृत की ये अमर कमाई.!! 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴 हनुमानजी रो कर बोले , आप साकेत पधार रहे हो.! मुझे छोड़कर इस धरती पर , आप वैकुंठ सिधार रहे हो.! आप बिना क्या मेरा जीवन , अमृत का विष पीना होगा.! तड़प-तड़प कर विरह अग्नि में , जीना भी क्या जीना होगा.! प्रभु अब आप ही बताओ , आप के बिना मैं यहां कैसे रहूंगा.!! 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴 प्रभु श्रीराम बोले : हनुमान सीता का यह वरदान , सिर्फ आपके लिए ही नहीं है.! बल्कि यह तो , संसार भर के कल्याण के लिए है.! तुम यहां रहोगे और संसार का कल्याण करोगे.! मांगो हनुमान वरदान मांगो.!! 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 हनुमान जी बोले : जहां जहां पर आपकी कथा हो , आपका नाम हो.! वहां-वहां पर मैं उपस्थित होकर , हमेशा आनंद लिया करूं.!! सीताजी बोलीं : दे दो , प्रभु दे दो.! भगवान राम नें हंसकर कहा : तुम नहीं जानती, सीते.! ये क्या मांग रहा है , ये अनगिणत शरीर मांग रहा है.! जितनी जगह मेरा पाठ होगा , उतनें शरीर मांग रहा है.!! सीताजी बोलीं : दे दो फिर क्या हुआ , आपका लाडला है.! प्रभु श्रीराम बोले : तुम्हारी इच्छा पूर्ण होगी.! वहां विराजोगे बजरंगी , जहां हमारी चर्चा होगी.! कथा जहां पर राम की होगी , वहां ये राम दुलारा होगा.! जहां हमारा चिंतन होगा , वहां पर जिक्र तुम्हारा होगा.!! कलयुग में मुझसे भी ज्यादा , पूजा हो हनुमान तुम्हारी.! जो कोई तुम्हारी शरण में आए , भक्ति उसको मिले हमारी.! मेरे हर मंदिर की शोभा बनकर आप विराजोगे.! मेरे नाम का सुमिरन करके , सुध बुध खोकर नाचोगे.!! नाच उठे ये सुन बजरंगी , चरणन शीश नवाया.! दुख-हर्ता , सुख-कर्ता प्रभु का , प्यारा नाम ये गाया.! 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 जय सियाराम, जय जय सियाराम.! जय सियाराम , जय जय सियाराम.!! ।। जय श्रीराम ।। 🌹🚩 जय बाबा की🚩 🌹

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हनुमान जी के पाठ से करें अपनी सभी समस्याओं का हल 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️ हनुमानजी की प्रार्थना में तुलसीदासजी ने हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमान बहुक आदि अनेक स्तोत्र लिखे, लेकिन हनुमानजी की पहली स्तुति किसने की थी? तुलसीदासजी के पहले भी कई संतों और साधुओं ने हनुमानजी की श्रद्धा में स्तुति लिखी है। लेकिन क्या आप जानते हैं सबसे पहले हनुमानजी की स्तुति किसने की थी? जब हनुमानजी लंका का दहन कर रहे थे तब उन्होंने अशोक वाटिका को इसलिए नहीं जलाया, क्योंकि वहां सीताजी को रखा गया था। दूसरी ओर उन्होंने विभीषण का भवन इसलिए नहीं जलाया, क्योंकि विभीषण के भवन के द्वार पर तुलसी का पौधा लगा था। भगवान विष्णु का पावन चिह्न शंख, चक्र और गदा भी बना हुआ था। सबसे सुखद तो यह कि उनके घर के ऊपर 'राम' नाम अंकित था। यह देखकर हनुमानजी ने उनके भवन को नहीं जलाया। विभीषण के शरण याचना करने पर सुग्रीव ने श्रीराम से उसे शत्रु का भाई व दुष्ट बताकर उनके प्रति आशंका प्रकट की और उसे पकड़कर दंड देने का सुझाव दिया। हनुमानजी ने उन्हें दुष्ट की बजाय शिष्ट बताकर शरणागति देने की वकालत की। इस पर श्रीरामजी ने विभीषण को शरणागति न देने के सुग्रीव के प्रस्ताव को अनुचित बताया और हनुमानजी से कहा कि आपका विभीषण को शरण देना तो ठीक है किंतु उसे शिष्ट समझना ठीक नहीं है। इस पर श्री हनुमानजी ने कहा कि तुम लोग विभीषण को ही देखकर अपना विचार प्रकट कर रहे हो मेरी ओर से भी तो देखो, मैं क्यों और क्या चाहता हूं...। फिर कुछ देर हनुमानजी ने रुककर कहा- जो एक बार विनीत भाव से मेरी शरण की याचना करता है और कहता है- 'मैं तेरा हूं, उसे मैं अभयदान प्रदान कर देता हूं। यह मेरा व्रत है इसलिए विभीषण को अवश्य शरण दी जानी चाहिए।' इंद्रा‍दि देवताओं के बाद धरती पर सर्वप्रथम विभीषण ने ही हनुमानजी की शरण लेकर उनकी स्तुति की थी। विभीषण को भी हनुमानजी की तरह चिरंजीवी होने का वरदान मिला है। वे भी आज सशरीर जीवित हैं। विभीषण ने हनुमानजी की स्तुति में एक बहुत ही अद्भुत और अचूक स्तोत्र की रचना की है। विभीषण द्वारा रचित इस स्तोत्र को 'हनुमान वडवानल स्तोत्र' कहते हैं। श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र,,,,,यह स्तोत्र सभी रोगों के निवारण में, शत्रुनाश, दूसरों के द्वारा किये गये पीड़ा कारक कृत्या अभिचार के निवारण, राज-बंधन विमोचन आदि कई प्रयोगों में काम आता है । रावण के भाई श्री विभीषण जो की भगवान राम व हनुमान जी के अनन्य भक्त थे, अपनी पूजा में वो निरंतर दोनों की पूजा किया करते थे। विधि:- सरसों के तेल का दीपक जलाकर 108 पाठ नित्य 41 दिन तक करने पर सभी बाधाओं का शमन होकर अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है। विनियोग:- ॐ अस्य श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषि:, श्रीहनुमान् वडवानल देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिं, सौं कीलकं, मम समस्त विघ्न-दोष निवारणार्थे, सर्व-शत्रुक्षयार्थे सकल- राज- कुल- संमोहनार्थे, मम समस्त- रोग प्रशमनार्थम् आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थं समस्त- पाप-क्षयार्थं श्रीसीतारामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-स्तोत्र जपमहं करिष्ये। ध्यान:- मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं। वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये ।। वडवानल स्तोत्र :- ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते प्रकट-पराक्रम सकल- दिङ्मण्डल- यशोवितान- धवलीकृत- जगत-त्रितय वज्र-देह रुद्रावतार लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-मंत्र उदधि-बंधन दशशिर: कृतान्तक सीताश्वसन वायु-पुत्र अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर कपि-सैन्य-प्राकार सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन कुमार- ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद सर्व- पाप- ग्रह- वारण- सर्व- ज्वरोच्चाटन डाकिनी- शाकिनी- विध्वंसन ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दु:ख निवारणाय ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल सर्व-पिशाच-मण्डलोच्चाटन भूत-ज्वर-एकाहिक-ज्वर, द्वयाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर चातुर्थिक-ज्वर, संताप-ज्वर, विषम-ज्वर, ताप-ज्वर, माहेश्वर-वैष्णव-ज्वरान् छिन्दि-छिन्दि यक्ष ब्रह्म-राक्षस भूत-प्रेत-पिशाचान् उच्चाटय-उच्चाटय स्वाहा । ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्र: आं हां हां हां हां ॐ सौं एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ नमो भगवते श्रीमहा- हनुमते श्रवण-चक्षुर्भूतानां शाकिनी डाकिनीनां विषम-दुष्टानां सर्व-विषं हर हर आकाश-भुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय प्रहारय प्रहारय शकल-मायां भेदय भेदय स्वाहा । ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते सर्व-ग्रहोच्चाटन परबलं क्षोभय क्षोभय सकल-बंधन मोक्षणं कुर-कुरु शिर:-शूल गुल्म-शूल सर्व-शूलान्निर्मूलय निर्मूलय नागपाशानन्त- वासुकि- तक्षक- कर्कोटकालियान् यक्ष-कुल-जगत-रात्रिञ्चर-दिवाचर-सर्पान्निर्विषं कुरु-कुरु स्वाहा । ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवत

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