Sudhir Kumar
मात्र अनुकूल परिस्थिति ही सहायक नहीं है, अपितु प्रतिकूल परिस्थिति भी सहायक है। अनुकूलता उतनी ताक़त प्रदान नहीं करती , जितनी की प्रतिकूलता प्रदान करती है। अनुकूलता में अपनी कमज़ोरी दिखाई नहीं पड़ती, जबकि प्रतिकूलता में स्वयं की कमज़ोरी साफ़ दिखाई पड़ती है, और जब कमज़ोरी साफ़ दिखाई पड़ने लगती है, तभी उस कमज़ोरी को दूर किया जा सकता है, इसी से दृढ़ता का , संकल्प का जन्म होता है। यदि सदैव अनुकूल स्थिति ही बनी रहे , तो चित्त ताक़तवर नहीं बन सकता, चित्त संकल्पवान नहीं बन सकता।और जब तक चित्त ताक़तवर नहीं होगा, संकल्पवान नहीं होगा , तब तक रूपान्तरण सम्भव ही नहीं।इसलिए रूपान्तरण में मित्र भी सहायक है, और शत्रु भी, अच्छे लोग भी और बुरे लोग भी, उपयुक्त माहौल भी और अनुपयुक्त माहौल भी।
Sudhir Kumar
प्रेम जिस द्वार के लिए कुंजी है। ज्ञान उसी द्वार के लिए ताला है। और मैंने देखा है कि जीवन उनके पास रोता है जो कि ज्ञान से भरे हैं लेकिन प्रेम से खाली हैं। एक चरवाहे को जंगल में पड़ा एक हीरा मिल गया था। उसकी चमक से प्रभावित हो उसने उसे उठा लिया था और अपनी पगड़ी में खोंस लिया था। सूर्य की किरणों में चमकते उस बहुमूल्य हीरे को रास्ते से गुज़रते एक जौहरी ने देखा तो वह हैरान हो गया, क्योंकि इतना बड़ा हीरा तो उसने अपने जीवन भर में भी नहीं देखा था। उस जौहरी ने चरवाहे से कहा : ‘क्या इस पत्थर को बेचोगे? मैं इसके दो पैसे दे सकता हूँ?' वह चरवाहा बोला : ‘नहीं। पैसों की बात न करें। यह पत्थर मुझे बड़ा प्यारा है, मैं इसे पैसों में नहीं बेच सकूँगा। लेकिन, आपको पसंद आ गया है तो इसे आप ले लें। लेकिन एक वचन दे दें कि इसे सम्हालकर रखेंगे। यह पत्थर बड़ा प्यारा है!’ जौहरी ने हीरा रख लिया और अपने घोड़े की रफ़्तार तेज की कि कहीं उस चरवाहे का मन न बदल जाए और कहीं वह छोड़े गये दो पैसे न माँगने लगे! लेकिन जैसे ही उसने घोड़ा बढ़ाया की उसने देखा कि हीरा रो रहा है! उसने हीरे से पूछा : ‘मित्र रोते क्यों हो? मैं तो तुम्हारा पारखी हूँ? वह मूर्ख चरवाहा तो तुम्हें जानता ही न था।’ लेकिन यह सुन वह हीरा और भी ज़ोर से रोने लगा था और बोला था : ‘वह मेरे मूल्य को तो नहीं जानता था, लेकिन मुझे जानता था। वह ज्ञानी तो नहीं था। लेकिन प्रेमी था। और प्रेम जो जानता है, वह ज्ञान नहीं जान पाता है।’ फूल और कांटे ओशो
Sudhir Kumar