लाँगूलास्त्र
वैष्णव साधकों द्वारा तथा शक्ति के आराधक इसका प्रयोग करते है
प्रेत बाधा
गुप्त शत्रू
तंत्र अभिचार को स्तंभित करना
इसका पाठ यहाँ दे रहे है
लेकिन पूर्ण प्रयोग केवल सुपात्र को दिया जाएगा
सामान्य रूप से सात्विक व्यवहार के साथ इसका पाठ कष्ट और शत्रू दूर कर देता है
इसी प्रकार इस से अभिमंत्रित भस्म द्वारा प्रेत उच्चाटन भी होता है
हनुमन्नञ्जनीसूनो महाबलपराक्रम।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय।।1।।
मर्कटाधिप मार्तण्ड मण्डल-ग्रास-कारक।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय।।2।।
अक्षक्षपणपिङ्गाक्षक्षितिजाशुग्क्षयङ्र।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय।।३।।
रुद्रावतार संसार-दुःख-भारापहारक।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय।।4।।
श्रीराम-चरणाम्भोज-मधुपायितमानस।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय।।5।।
बालिप्रथमक्रान्त सुग्रीवोन्मोचनप्रभो।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय।।6।।
सीता-विरह-वारीश-मग्न-सीतेश-तारक।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय।।7।।
रक्षोराज-तापाग्नि-दह्यमान-जगद्वन।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय।।8।।
ग्रस्ताऽशैजगत्-स्वास्थ्य-राक्षसाम्भोधिमन्दर।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय।।9।।
पुच्छ-गुच्छ-स्फुरद्वीर-जगद्-दग्धारिपत्तन।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय।।10।।
जगन्मनो-दुरुल्लंघ्य-पारावार विलंघन।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय।।11।।
स्मृतमात्र-समस्तेष्ट-पूरक प्रणत-प्रिय।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय।।12।।
रात्रिञ्चर-चमूराशिकर्त्तनैकविकर्त्तन।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय।।13।।
जानकी जानकीजानि-प्रेम-पात्र परंतप।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय।।14।।
भीमादिक-महावीर-वीरवेशावतारक।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय।।15।।
वैदेही-विरह-क्लान्त रामरोषैक-विग्रह।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय।।16।।
वज्राङ्नखदंष्ट्रेश वज्रिवज्रावगुण्ठन।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय।।17।।
अखर्व-गर्व-गंधर्व-पर्वतोद्-भेदन-स्वरः।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय।।18।।
लक्ष्मण-प्राण-संत्राण त्रात-तीक्ष्ण-करान्वय।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय।।19।।
रामादिविप्रयोगार्त्त भरताद्यार्त्तिनाशन।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय।।20।।
द्रोणाचल-समुत्क्षेप-समुत्क्षिप्तारि-वैभव।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय।।21।।
सीताशीर्वाद-सम्पन्न समस्तावयवाक्षत।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय।।
श्री राम जय राम जय जय राम..
जय जय विघ्न हरण हनुमान..
जय जय राम दूत हनुमान..
संकट मोचन कृपा निधान ..
श्री राम जय राम जय जय राम..
_/\_ मारुति नंदन नमो नमः _/\_ कष्ट भंजन नमो नमः _/\_
_/\_ असुर निकंदन नमो नमः _/\_ श्रीरामदूतम नमो नमः _/\_
🌹 हनुमानजी के दस रहस्य 🌹
〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️ 〰️〰️〰️〰️
हनुमानजी इस कलियुग के अंत तक अपने शरीर में ही रहेंगे। वे आज भी धरती पर विचरण करते हैं। वे कहां रहते हैं, कब-कब व कहां-कहां प्रकट होते हैं और उनके दर्शन कैसे और किस तरह किए जा सकते हैं, हम यह आपको बताएंगे,और हां,अंत में जानेंगे आप एक ऐसा रहस्य जिसे जानकर आप सचमुच ही चौंक जाएंगे...
चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥
संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
चारों युग में हनुमानजी के ही परताप से जगत में उजियारा है। हनुमान को छोड़कर और किसी देवी-देवता में चित्त धरने की कोई आवश्यकता नहीं है।
द्वंद्व में रहने वाले का हनुमानजी सहयोग नहीं करते हैं। हनुमानजी हमारे बीच इस धरती पर सशरीर मौजूद हैं। किसी भी व्यक्ति को जीवन में श्रीराम की कृपा के बिना कोई भी सुख-सुविधा प्राप्त नहीं हो सकती है। श्रीराम की कृपा प्राप्ति के लिए हमें हनुमानजी को प्रसन्न करना चाहिए। उनकी आज्ञा के बिना कोई भी श्रीराम तक पहुंच नहीं सकता। हनुमानजी की शरण में जाने से सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं। इसके साथ ही जब हनुमानजी हमारे रक्षक हैं तो हमें किसी भी अन्य देवी, देवता, बाबा, साधु, ज्योतिष आदि की बातों में भटकने की जरूरत नहीं।
युवाओं के प्रेरक बजरंग बली👉 हनुमान इस कलियुग में सबसे ज्यादा जाग्रत और साक्षात हैं। कलियुग में हनुमानजी की भक्ति ही लोगों को दुख और संकट से बचाने में सक्षम है। बहुत से लोग किसी बाबा, देवी-देवता, ज्योतिष और तांत्रिकों के चक्कर में भटकते रहते हैं और अंतत: वे अपना जीवन नष्ट ही कर लेते हैं... क्योंकि वे हनुमान की भक्ति-शक्ति को नहीं पहचानते। ऐसे भटके हुए लोगों का राम ही भला करे।
क्यों प्रमुख देव हैं हनुमान👉 हनुमानजी 4 कारणों से सभी देवताओं में श्रेष्ठ हैं। पहला यह कि वे रीयल सुपरमैन हैं, दूसरा यह कि वे पॉवरफुल होने के बावजूद ईश्वर के प्रति समर्पित हैं, तीसरा यह कि वे अपने भक्तों की सहायता तुरंत ही करते हैं और चौथा यह कि वे आज भी सशरीर हैं। इस ब्रह्मांड में ईश्वर के बाद यदि कोई एक शक्ति है तो वह है हनुमानजी। महावीर विक्रम बजरंगबली के समक्ष किसी भी प्रकार की मायावी शक्ति ठहर नहीं सकती।
1:-👉सबसे बड़ा रहस्य.. क्या हनुमानजी बंदर थे? :👉
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️👉〰️
👉हनुमान का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। नए शोधानुसार प्रभु श्रीराम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था अर्थात आज (फरवरी 2015) से लगभग 7129 वर्ष पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था। शोधकर्ता कहते हैं कि आज से 9 लाख वर्ष पूर्व एक ऐसी विलक्षण वानर जाति भारतवर्ष में विद्यमान थी, जो आज से 15 से 12 हजार वर्ष पूर्व लुप्त होने लगी थी और अंतत: लुप्त हो गई। इस जाति का नाम कपि था।
हनुमानजी के संबंध में यह प्रश्न प्राय: सर्वत्र उठता है कि 'क्या हनुमानजी बंदर थे?' इसके लिए कुछ लोग रामायणादि ग्रंथों में लिखे हनुमानजी और उनके सजातीय बांधव सुग्रीव अंगदादि के नाम के साथ 'वानर, कपि, शाखामृग, प्लवंगम' आदि विशेषण पढ़कर उनके बंदर प्रजाति का होने का उदाहरण देते हैं। वे यह भी कहते हैं कि उनकी पुच्छ, लांगूल, बाल्धी और लाम से लंकादहन का प्रत्यक्ष चमत्कार इसका प्रमाण है। यह भी कि उनकी सभी जगह सपुच्छ प्रतिमाएं देखकर उनके पशु या बंदर जैसा होना सिद्ध होता है। रामायण में वाल्मीकिजी ने जहां उन्हें विशिष्ट पंडित, राजनीति में धुरंधर और वीर-शिरोमणि प्रकट किया है, वहीं उनको लोमश ओर पुच्छधारी भी शतश: प्रमाणों में व्यक्त किया है।
दरअसल, आज से 9 लाख वर्ष पूर्व मानवों की एक ऐसी जाति थी, जो मुख और पूंछ से वानर समान नजर आती थी, लेकिन उस जाति की बुद्धिमत्ता और शक्ति मानवों से कहीं ज्यादा थी। अब वह जाति भारत में तो दुर्भाग्यवश विनष्ट हो गई, परंतु बाली द्वीप में अब भी पुच्छधारी जंगली मनुष्यों का अस्तित्व विद्यमान है जिनकी पूछ प्राय: 6 इंच के लगभग अवशिष्ट रह गई है। ये सभी पुरातत्ववेत्ता अनुसंधायक एकमत से स्वीकार करते हैं कि पुराकालीन बहुत से प्राणियों की नस्ल अब सर्वथा समाप्त हो चुकी है।
. 2:--👉दूसरा रहस्य👉
〰️〰️👉〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
. 👉पहला जन्म स्थान :हनुमानजी की माता का नाम अंजना है, जो अपने पूर्व जन्म में एक अप्सरा थीं। हनुमानजी के पिता का नाम केसरी है, जो वानर जाति के थे। माता-पिता के कारण हनुमानजी को आंजनेय और केसरीनंदन कहा जाता है। केसरीजी को कपिराज कहा जाता था, क्योंकि वे वानरों की कपि नाम की जाति से थे। केसरीजी कपि क्षेत्र के राजा थे। कपिस्थल कुरु साम्राज्य का एक प्रमुख भाग था। हरियाणा का कैथल पहले करनाल जिले का भाग था। यह कैथल ही पहले कपिस्थल था। कुछ लोग मानते हैं कि यही हनुमानजी का जन्म स्थान है।
हनुमानजी का जन्म स्थान कहां है???
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰