Sudhir Kumar

आप सबसे दूर हैं फिर भी सबके पास हैं । हे कामदेव को भस्म कर देनेवाले प्रभू ! आप अति सूक्ष्म हैं फिर भी विराट हैं । हे तीन नेत्रवाले प्रभू ! आप वृद्ध हैं फिर भी युवा हैं । हे नीलेकंठ वाले प्रभू !आप सबमें हैं फिर भी सबसे परे हैं । आपको मेरा कोटि-कोटि प्रणाम । ।।हर हर महादेव।।

Sudhir Kumar

शून्य मंडल में संतदास अरहंट एक बहंत उलट्या जल पाताल का , जाए आकाश भरंत। संत दीवाना संतदास बसे दीवाने देश बात दीवानी करत है सतगुरु के उपदेश। अगम पंथ कु गम किया सतगुरु के उपदेश , अब जाइ पहुंता संतदास संता हंदे देश । , जाइ पहूता उस देश कु सो तो भया निहाल अण पंहुचा का संतदास होसी कोण हवाल। सो जन पहूता संतदास जाका झरत दश्वा द्वार। ररंकार की जोति का जहां करत दीदार। बाणी संतदास जी महाराज परचा को अंग स्वामीजी महाराज फरमाते है की आपने अब तक पानी को आसमान से गिरते हुए देखा है और बहुत जोरो से गिरते देखा है। परन्तु ऐसा कभी नहीं देखा होगा की पानी जमीन से ही नहीं पाताळ से आसमान की तरफ जा रहा हो। यह अचरज की बाते है। निरे पागलपन दीवानगी से भरी लगती है। परन्तु है सब सच एक रत्ती झूठ और गप्प नहीं है। पाताल से पानी आसमान की तरफ जाने से मतलब है की पानी की लहरों के सामान बहने वाली मन की लहरे जो संसार के तट पर बार बार टकराती थी। वो चन्द्रमा की बदली गति से आसमान की तरफ उठने लगती है। जो कोई आत्मा नाम का भेद जान लेती है। तो मन में होने वाली सुमिरन की गति बढ़ जाती है। मन में उठता परमात्मा के प्रेम का ज्वार सुमिरन रटन अभ्यास को बढ़ा देता है। आंतरिक नजारा देखते ही आत्मा मन को ऊपर की तरफ खिंच लेती है । जो मन संसार की गन्दी वासनाओ भोगो विलासों रूपी नालियों मर्यादा के तटों को तोड़ता हुआ बहता था। अब शब्द धुन रामनाम सतनाम की झंकार को सुनकर बावला हो जाता है। उसकी लहरे ऊपर की ओर उठने लगती है। आसमानो में भी एक अरहंट लगातार एकसार पानी उड़ेलता रहता है। वो तो कभी बंद ही नहीं होता है। छह ऋतू बारह मास ही उसका जल सूरत के मस्तक पर गिरता ही रहता है। जो शब्द धुन रामनाम के सरूप में होता है । बड़े पागलपन से भरी बाते लगती है। किसी अजीब दुनिया का किस्सा लगता है। और वहां के रहने वाले पागलो की बाते कहने सुनने में लगती है। यह सब राम कहानी है जो संत सतगुरु अपने गुरु महाराज के उपदेश आज्ञा पा कर लोगो पर जाहिर करते है। जिसका कोई रुपया पैसा वो किसी से नहीं लेते है। यह भी एक दीवानगी का काम है। यह संसार और इसमें घटने वाली सभी घटनाए सब जन्म मरण परिणय सुख दुःख अमीरी गरीबी सब सपने के समान है। इनमे एक रत्ती सच नहीं है। इसमें किसी फ़िल्मी कहानी की तरह सभी मसाले डले रहते है । मिलन है जुदाई है प्रेम नफरत झगड़ा लड़ाई एक दूसरे के दुःख सुख और भी न जाने क्या क्या सारे काम मनोरजंक होते है। इनसब में कोई आत्मिक सुख नही होता है। आत्मा का स्वभाव एक मात्र आनंद है मस्ती है प्रेम है जो सूरत शब्द अभ्यास में है अगम पंथ के गमन में है । अगम राह के चलने में है। जो कोई संसार रूपी स्वप्न से जाग गया है। जिसने अपनी आंतरिक आत्मिक शक्ति को जगा लिया है। नाम की कमाई करता है अपने भीतर बैठे परमात्मा को जान गया है। उसकी तो रक्षा हो जाएगी। वो तो काल से बच जाएगा। लेकिन जिसने संतो की बातो को नहीं माना है ।उन्हें उनकी बातों से दीवाना समझ बैठा है ।वो काल से नहीं बचेगा।संसार के सपनो में ही उसकी मौत हो जाएगी ।

Sudhir Kumar

मनुष्य धन और कुल से नहीं बल्कि दिव्य स्वभाव और भव्य आचरण से महान बनता है । ।।जय श्रीराम।।

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