Sudhir Kumar

*सुन्दरकाण्ड का इतना माहात्म्य क्यों है? तुलसीदासजी रामकथा लिख रहे थे। हनुमानजी भगवान श्रीराम को अपने आत्मज से ज़्यादा प्रिय थे। प्रभु ने सोचा कि भक्त के मान में मेरा सम्मान है। हनुमानजी के माहात्म्य से संसार को परिचित कराने का ऐसा अवसर कहाँ मिलेगा! प्रभु ने अपना प्रभाव दिखाया। रामचरितमानस के सुन्दरकाण्ड को लिखते-लिखते तुलसी हनुमानजी को श्रीराम के समान सामर्थ्यवान लिख गए। तुलसीबाबा जितनी भी रामकथा लिखते उसे हनुमानजी को सौंप देते। कथा देखने के बाद हनुमानजी अनुमोदन करते थे। कहते हैं सुंदरकांड बजरंग बली भड़क गए कि भक्त को स्वामी के सामान प्रतापी कैसे लिख दिया? आगबबूले होकर वह इसे फाड़ने ही वाले थे कि श्रीराम ने उन्हें दर्शन दिए और कहा- यह अध्याय मैंने स्वयं लिखा है पवनपुत्र, क्या मैं मिथ्या कहूँगा? इस विप्र का क्या दोष? हनुमानजी नतमस्तक हो गए- प्रभु आप कह रहे हैं तो यही सही है। मुझे मानस में सुंदरकांड सर्वाधिक प्रिय रहेगा। इसलिए सुंदरकांड के पाठ का इतना माहात्म्य है। सुन्दरकाण्ड का पाठ करने वाले के कष्ट हरने को तत्पर रहते हैं श्रीहनुमान। यदि रोज़ संभव न हो तो कम से कम मंगलवार या शनिवार को इसका पाठ अवश्य करना चाहिए।आपसे हाथ जोड़कर विनती है कि इसे फैलाने में सहयोग करें, इससे प्रभुनाम के गुणगान में हमारा हौसला बढ़ता है। हनुमद् कृपा के लिए लिखें- 🌹।।जय सियाराम जय जय हनुमान।।🌹*

Sudhir Kumar

नारी के 9 अवतार 1. सुबह कामकाज में व्यस्त (अष्टभुजा) 2.बच्चों को पढाये (सरस्वती ) 3.घर खर्च के पैसों से बचत (महालक्ष्मी) 4. परिवार के लिए रसोई बनाये (अन्नपूर्णा ) 5. परिवार की तकलीफ में द्रढ़ता से खड़ी (पार्वती ) 6. पति गीला रुमाल पलंग पर रखे ( दुर्गा) 7. पति द्वारा लाई वस्तु खराब निकले तो ( काली ) 8. पति यदि भुल से पीहर के बारें में कुछ कह दे ( महिसासूर मर्दिनी ) 9.पति यदि दुसरी स्त्री की प्रशंशा कर दे तो ( रणचंडी) 🤣😜🤣 खुश नसीब है जिन्हें प्रतिदिन माताजी के नव अवतारों के दर्शन का लाभ मिलता है। जय माता दी 😜🤣😜🤣

Sudhir Kumar

जाने माँ काली से जुड़े आश्चर्यचकित करने वाले 7 अनोखे तथ्य, जिन्हे सुन प्राप्त होती माता की विशेष कृपा ! maa kali देवो के देव महाकाल की काली (maa kali), काली से अभिप्राय समय अथवा काल से है। काल वह… देवो के देव महाकाल की काली (maa kali), काली से अभिप्राय समय अथवा काल से है। काल वह होता है जो सब कुछ अपने में निगल जाता है। काली भयानक एवं विकराल रूप वाले श्मशान की देवी। वेदो में बताया गया है की समय ही आत्मा होती है। आत्मा को ही समय कहा जाता है। माता काली की उत्तपति धर्म की रक्षा हेतु हुई व पापियों के सर्वनाश के करने के लिए हुई है।काली माता 10 महाविद्याओ में से एक है। उन्हें देवी दुर्गा की महामाया (maa kali) कहा गया है। कलियुग में तीन देवता है जागृत :- कलियुग में तीन देवता को जागृत बताया गया है। हनुमान, माँ काली एवं काल भैरव . माता काली का अस्त्र तलवार तथा त्रिशूल है व माता का वार शक्रवार है। माता काली का दिन अमावश्या कहलाता है। माता काली के चार रूप है 1 . दक्षिण काली 2 . श्मशान काली 3 . मातृ काली 4 . महाकाली. माता काली की उपासना जीवन में सुख, शान्ति, शक्ति तथा विद्या देने वाली बताई गई है। माता काली(maa kali) के दरबार की विशेषता :- हमारे हिन्दू सनातन धर्म में बताया है की कलयुग में सबसे ज्यादा जगृत देवी माँ काली होगी। माँ कालिका की पूजा बंगाल एवं असम में बहुत ही भव्यता एवं धूमधाम के साथ मनाई जाती है। माता काली के दरबार में जब कोई उनका भक्त एक बार चला जाता है तो हमेशा के लिए वहां उसका नाम एवं पता दर्ज हो जाता है।माता के दारबार में यदि दान मिलता है तो दण्ड भी प्राप्त होता है। यदि माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है तो माता को रुष्ट करने श्राप भी भुगतना पड़ता है। यदि आप माता काली के दरबार में जो भी वादा पूर्ण करने आये है उसे अवश्य पूर्ण करें। यदि आप अपने मनोकामना पूर्ति के बदले माता को कोई वचन पूर्ण करने के लिए कहते है तो उसे अवश्य पूर्ण करें अन्यथा माता रुष्ट हो जाती है। जो एकनिष्ठ, सत्यावादी तथा अपने वचन का पका होगा माता उसकी मनोकामना भी अवश्य पूर्ण करती है। माँ दुर्गा ने लिए थे कई जन्म :- माँ दुर्गा ने कई अवतारों एवं जन्म लिए है। माता के जन्म के संबंध में दो कथाएं अधिक प्रसिद्ध है। पहली कथा के अनुसार माता ने राजा दक्ष के घर में सती के रूप में जन्म लिया था। इसके बाद यज्ञ के अग्नि कुंड में कूदकर अपने प्राणो की आहुति दे दी थी।दूसरी कथा के अनुसार माता ने पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लिया था इस जन्म में माता का नाम पार्वती था. दक्ष प्रजापति ब्रह्मा के पुत्र थे। उनकी दत्तक पुत्री थीं सती, जिन्होंने तपस्या करके शिव को अपना पति बनाया। शिव की जीवनशैली दक्ष को बिलकुल ही नापसंद थी। शिव और सती का अत्यंत सुखी दांपत्य जीवन था। शिव को बेइज्जत करने का खयाल दक्ष के दिल से नहीं गया था।इसी मंशा से उन्होंने एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमें शिव और सती को छोड़कर सभी देवी-देवताओं को निमंत्रित किया। जब सती को इसकी सूचना मिली तो उन्होंने उस यज्ञ में जाने की ठान ली।शिव से अनुमति मांगी। तो उन्होंने साफ मना कर दिया। उन्होंने कहा कि जब हमें बुलाया ही नहीं है, तो हम क्यों जाएं? सती ने कहा कि मेरे पिता हैं तो मैं तो बिन बुलाए भी जा सकती हूं। लेकिन शिव ने उन्हें वहां जाने से मना किया तो माता सती को क्रोध आ गया। क्रोधित होकर वे कहने लगीं- ‘मैं दक्ष यज्ञ में जाऊंगी और उसमें अपना हिस्सा लूंगी, नहीं तो उसका विध्वंस कर दूंगी। वे पिता और पति के इस व्यवहार से इतनी आहत हुईं कि क्रोध से उनकी आंखें लाल हो गईं। वे उग्र-दृष्टि से शिव को देखने लगीं। उनके होंठ फड़फड़ाने लगे। फिर उन्होंने भयानक अट्टहास किया। शिव भयभीत हो गए। वे इधर-उधर भागने लगे। उधर क्रोध से सती का शरीर जलकर काला पड़ गया। उनके इस विकराल रूप को देखकर शिव तो भाग चले। जिस दिशा में भी वे जाते वहां एक-न-एक भयानक देवी उनका रास्ता रोक देतीं। वे दसों दिशाओं में भागे और 10 देवियों ने उनका रास्ता रोका। अंत में सभी काली में मिल गईं। हारकर शिव सती के सामने आ खड़े हुए. उन्होंने सती से पूछा- ‘कौन हैं ये?’ सती ने बताया- ‘ये मेरे 10 रूप हैं। आपके सामने खड़ी कृष्ण रंग की काली हैं। आपके ऊपर नीले रंग की तारा हैं, पश्चिम में छिन्नमस्ता, बाएं भुवनेश्वरी। पीठ के पीछे बगलामुखी, पूर्व-दक्षिण में द्यूमावती। दक्षिण-पश्चिम में त्रिपुर सुंदरी, पश्चिम-उत्तर में मातंगी। उत्तर-पूर्व में षोडशी हैं। मैं खुद भैरवी रूप में अभयदान देने के लिए आपके सामने खड़ी हूं।’ माता का यह विकराल रूप देख शिव कुछ भी नहीं कह पाए और वे दक्ष यज्ञ में चली गई दुखो को तुरंत दूर करती है महाकाली :- 10 महाविद्याओ में माँ काली की साधन को साधक अधिक महत्वता देते है क्योकि माँ काली ही एक ऐसी देवी है जो अति शीघ्र अपने भक्तो से प्रसन्न हो जाती है। यदि साधना सही प्रकार

1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219