Sudhir Kumar
.....फ़रीद के गीतों ने पूरे मुलतान, पूरे पंजाब को सुहाग के सिंदूर से रंग दिया।प्रतीक रूप में कहा जाता है कि उनके गीतों की मिठास से सतलज का पानी भी मीठा बन गया था।धीरे-धीरे फ़रीद को गंजशकर कहा जाने लगा।गंजशकर यानी शक्कर का खज़ाना.... कुतुबुद्दीन बोले,किसी से मुहब्बत करो तो उसे यकीन दिलाना पड़ता है कि उसके लिए तुम कुछ भी कर सकते हो,तूने अभी किया ही क्या है बेटा? कुतुबुद्दीन के ये शब्द फरीद के सीने को छलनी कर गए।क्या करूँ कि अल्लाह को यकीन आ जाए-इस जुनून ने घेर लिया।कभी वह रात-रातभर वह एक टांग पर खड़ा रहता,कभी भूँखा रहता तो कभी कोई और तपस्या करता।अल्लाह नहीं दिखा।फरीद ने ठान ली थी कि वो ज़िद्दी तो मैं भी ज़िद्दी।एक दिन महरौली के कुंए में अपने पांव से रस्सी बांध उलटा लटक गया।।हफ्ते भर भूँखा-प्यासा यूँ ही उल्टा लटका रहा,कि जब तक तू नहीं दिखेगा तब तक निकलूँगा नहीं।शरीर जर्जर हो चुका था,लेकिन मन एक ही रट लगाए था कि दिख जा आज,दिख जा..। सातवें दिन उधर से कोई गुजरता था।उसने देखा कि कोई लटका है, सो उसने फरीद को कुंए से बाहर निकाला।फरीद का शरीर इतना जर्जर हो चुका था कि न तो वह कुछ बोल सका न कोई विरोध कर सका।राहगीर उसे वहीं कुएं के किनारे छोड़ आगे बढ़ गया।फरीद के शरीर मे कोई चलन-चलन नहीं थी,मानो एक मुरदा पड़ा हो।पेड़ों पर बैठे कौवों ने देखा कि एक लाश पड़ी है, सो उसे खाने आ बैठे।इधर-उधर चोंच मारी,कहीं कोई मांस नहीं।खाने लायक उस शरीर में कुछ दिखा तो बस दो आंखें।एक कौवे ने बाईं आंख में चोंच मारी।फरीद के मुंह से निकला- कागा सब तन खाइयों,चुन-चुन खाइयो मांस ये दो नयना ना खाइयो इन पिय देखन की आस फरीद की ये पंक्तियां इस विश्व के इतिहास में कहे गए संत काव्य की पहली पंक्तियां थीं,जिसके फरीद पुरोधा बनने को थे।जब आंखें खोलीं तो फरीद ने नहीं,शेख फ़रीद ने खोलीं। ओशो का नजरिया~शेख़ फ़रीद प्रेम के पथिक हैं,और जैसा प्रेम का गीत फ़रीद ने गाया है वैसा किसीने नहीं गाया।कबीर भी प्रेम की बातें करते हैं लेकिन ध्यान की भी बात करते हैं।दादू भी प्रेम की बात करते हैं लेकिन ध्यान की बात को बिल्कुल नहीं भूल जाते।नानक भी प्रेम की बात करते हैं,लेकिन वह ध्यान से मिश्रित है। फ़रीद ने शुद्ध प्रेम के गीत गाए हैं;ध्यान की बात ही नहीं की है; प्रेम में ही ध्यान जाना है।इसलिए प्रेम की इतनी शुद्ध कहानी कहीं और न मिलेगी।फ़रीद खालिस प्रेम हैं।प्रेम को समझ लिया तो फ़रीद को समझ लिया।फ़रीद को समझ लिया तो प्रेम को समझ लिया...!! 💖💖
Sudhir Kumar
#ओशो🎤 अहंकार आत्मबोध का आभाव है। आत्म स्मरण का आभाव है। अहंकार अपने को न जानने का दूसरा नाम है। इसलिए अहंकार से मत लड़ों। अहंकार और अंधकार पर्यायवाची है। हां, अपनी ज्योति को जला लो। ध्यान का दीया बन जाओ। भीतर एक जागरण को उठा लो। भीतर सोए-सोए न रहो। भीतर होश को उठा लो। और जैसे ही होश आया, चकित होओगे, हंसोगे अपने पर हंसोगे। हैरान होओगे। एक क्षण को तो भरोसा भी न आएगा कि जैसे ही भीतर होश आया वैसे ही अहंकार नहीं पाया जाता है। न तो मिटाया,न मिटा,पाया ही नहीं जाता है। इसलिए मैं तुम्हें न तो सरल ढंग बता सकता हूं। न कठिन; न तो आसान रास्ता बता सकता हूं, न खतरनाक; न तो धीमा, न तेज। मैं तो सिर्फ इतना ही कह सकता हूं: जागों और जागने को ही मैं ध्यान कहता हूं। आदमी दो ढंग से जी सकता है। एक मूर्च्छित ढंग है, जैसा हम सब जीते है। चले जाते है। यंत्रवत,किए जाते है काम यंत्रवत, मशीन की भांति। थोड़ी सी परत हमारे भीतर जागी है। अधिकांश हमारा अस्तित्व सोया पडा है। और वह जो थोड़ी सी परत जागी। वह भी न मालूम कितनी धूल ध्वांस, कितने विचारों, कितनी कल्पनाओं, कितने सपनों में दबी है। सबसे पहला काम है; वह जो थोड़ा सी हमारे भीतर जागरण की रेखा है। उसे सपनों से मुक्त करो, उसे विचारों से शून्य करो। उसे साफ करो, निखारों,धोआ,पखारो। और जैसे ही वह शुद्ध होगी वैसे ही तुम्हारे हाथ में कीमिया लग जाएगी। राज लग जाएगा। कुंजी मिल जाएगी। फिर जो तुमने उसे थोड़ी सी पर्त के साथ किया है। वहीं तुम्हें उसके नीचे की पर्त के साथ करना है। फिर से नीचे की पर्त, फिर और नीचे की पर्त.....क्रमशः #आपुईगई_हिराय_प्रवचन_५
Sudhir Kumar