Sudhir Kumar
#हाउसवाइफ (दर्द को समझ सकते है तो पढ़े) 🌺🌺🌺🌺 मैं थक गयी मुझे भी अब नौकरी करनी है.. बस! #बड़ी_सख्ती के साथ पत्नी ने पति से कहा.. #तो_पति_ने_कहा.. मगर क्यों क्या कमी है घर में, #आखिर तुम नौकरी #क्यों करना चाहती हो???? पत्नी ने शिथिल होकर कहा..क्योंकि मैं #जानती हूँ कि.. अगर छुट्टी चाहिए तो दफ्तर में काम करो घर में नहीं। बिना तनख्वाह के सबका रौब झेलो.. इतने सारे बॉस से तो अच्छा है..कि मैं नौकरी करूँ.. #इंडिपेंडेंट_रहूँ.. #छुट्टी_भी_मिलेगी, #घर_में_रौब_भी_रहेगा, और मेरी डिग्रियाँ भी रद्दी न बनेंगी . महत्वाकांक्षी लोग रोटी कमाते हैं बनाते नहीं.. दिन भर बाई की तरह लगे रहने वाली.. स्वयं को बनने #सँवरने का समय नहीं देती.. तो उसको गयी गुजरी समझा जाता है. बाई भी अपना #रौब जमाती है.. छुट्टी करती है.. बेढंगे काम का पैसा लेती है .. #पर_मैं? मैं क्या हूँ..मुझे कभी कोई #एक्सक्यूज नहीं.. कोई तारीफ नहीं.. कोई वैल्यू नहीं.. और अपेक्षाओं का अंत नहीं.. ऊपर से नो ऐबीलिटी.. #मैं_हूँ_ही_क्या ??????? एक मामूली हाउस वाइफ..😢 पति ने कहा नहीं.. तुम अपने घर की #बॉस हो।🧙♀ मगर तुम में कुछ कमी है.. आर्डर की जगह #रिक्वेस्ट करती हो.. डांटने की जगह रूठ जाती हो.. गुस्सा करने वालों को बाहर का रास्ता दिखाने की बजाय मनाती हो.. नौकरी करके रोज बनसँवर कर.. बाहर की दुनियाँ में आपना वजूद बनाना अपने लिए जीना आसान है.. लेकिन अपने आप को मिटाकर अपनों को बनाए रखना आसान नहीं होता, आसान नहीं होता खुद को भुलाकर सबका ध्यान रखना.. #तुम_हाउस_वाइफ_नहीं_हाउस_मैनेजर_हो.. अगर तुम घर को मैनेज न करो तो हम बिखर जाएँगे.. आदतें तुमने बिगाड़ी हैं हमारी.. हम कहीं भी कुछ भी पटकते हैं.. जूते कपड़े किताबें बर्तन. तुम समेटती रही कभी टोका होता.. ये कहकर पति ने कहा अब से मैं सच में हैल्प करुँगा तुम्हारी.. चलो मैं ये बर्तन धो देता हूँ. सिंक में पड़े बर्तनों को छूते ही पत्नी नाराज हो गयी .. अच्छा.. #अब आप ये सब करोगे????? हटो..मैं आपको पति ही देखना चाहती हूँ बीबी का #गुलाम नहीं... पति ने कहा..अच्छा शाम को खाना मत बनाना... #पिज्जा मँगालेंगे.. कीमत सुनकर पत्नी फिर.. ये फालतू के खर्चे.. घर का बना शुद्ध खाओ.. #पति_ने_कहा.. तुम चाहती क्या हो.. कभी कभी आराम हैल्प देना चाहूँ तो वो भी नहीं और शिकायत भी... पत्नी ने कहा..कुछ नहीं गुस्सा मुझे भी आ सकता है. थकान मुझे भी हो सकती है. मन मेरा भी हो सकता है.. बीमार मैं भी हो सकती हूँ.. बस चाहिए कुछ नहीं.... कभी कभी..झुँझलाऊँ.. गुस्सा करूँ तो आप भी ऐसे ही झेल लेना जैसे मैं सबको झेलती हूँ मेरा हक सिर्फ आप पर है। 👬🙋♀🙏🙏🙏🙏🙋♀👬 हमे नाज है परिवार समर्पित गृहणियों पर👏👏 ----------------------------------------------------------------------- 【आपलोगो को #कहानी अच्छी लगे तो #लाइक_और_शेयर_जरूर_कर_दीजिए ताकि आपको और अच्छे अच्छे जानकारी दे सकू】
Sudhir Kumar
#लंकाधीश रावण कि मांग#समय निकालकर जरूर पढ़ें (अद्भुत प्रसंग, भावविभोर करने वाला प्रसंग जरुर प्ढ़े) बाल्मीकि रामायण और तुलसीकृत रामायण में इस कथा का वर्णन नहीं है, पर तमिल भाषा में लिखी *महर्षि कम्बन की #इरामावतारम्'* मे यह कथा है। रावण केवल शिवभक्त, विद्वान एवं वीर ही नहीं, अति-मानववादी भी था..। उसे भविष्य का पता था..। वह जानता था कि श्रीराम से जीत पाना उसके लिए असंभव है..। जब श्री राम ने खर-दूषण का सहज ही बध कर दिया तब तुलसी कृत मानस में भी रावण के मन भाव लिखे हैं-- खर दूसन मो सम बलवंता । तिनहि को मरहि बिनु भगवंता।। रावण के पास जामवंत जी को #आचार्यत्व का निमंत्रण देने के लिए लंका भेजा गया..। जामवन्त जी दीर्घाकार थे, वे आकार में कुम्भकर्ण से तनिक ही छोटे थे। लंका में प्रहरी भी हाथ जोड़कर मार्ग दिखा रहे थे। इस प्रकार जामवन्त को किसी से कुछ पूछना नहीं पड़ा। स्वयं रावण को उन्हें राजद्वार पर अभिवादन का उपक्रम करते देख जामवन्त ने मुस्कराते हुए कहा कि मैं अभिनंदन का पात्र नहीं हूँ। मैं वनवासी राम का दूत बनकर आया हूँ। उन्होंने तुम्हें सादर प्रणाम कहा है। रावण ने सविनय कहा– "आप हमारे पितामह के भाई हैं। इस नाते आप हमारे पूज्य हैं। आप कृपया आसन ग्रहण करें। यदि आप मेरा निवेदन स्वीकार कर लेंगे, तभी संभवतः मैं भी आपका संदेश सावधानी से सुन सकूंगा।" जामवन्त ने कोई आपत्ति नहीं की। उन्होंने आसन ग्रहण किया। रावण ने भी अपना स्थान ग्रहण किया। तदुपरान्त जामवन्त ने पुनः सुनाया कि वनवासी राम ने सागर-सेतु निर्माण उपरांत अब यथाशीघ्र महेश्व-लिंग-विग्रह की स्थापना करना चाहते हैं। इस अनुष्ठान को सम्पन्न कराने के लिए उन्होंने ब्राह्मण, वेदज्ञ और शैव रावण को आचर्य पद पर वरण करने की इच्छा प्रकट की है। " मैं उनकी ओर से आपको आमंत्रित करने आया हूँ।" प्रणाम प्रतिक्रिया, अभिव्यक्ति उपरान्त रावण ने मुस्कान भरे स्वर में पूछ ही लिया "क्या राम द्वारा महेश्व-लिंग-विग्रह स्थापना लंका-विजय की कामना से किया जा रहा है ?" "बिल्कुल ठीक। श्रीराम की महेश्वर के चरणों में पूर्ण भक्ति है. I" जीवन में प्रथम बार किसी ने रावण को ब्राह्मण माना है और आचार्य बनने योग्य जाना है। क्या रावण इतना अधिक मूर्ख कहलाना चाहेगा कि वह भारतवर्ष के प्रथम प्रशंसित महर्षि पुलस्त्य के सगे भाई महर्षि वशिष्ठ के यजमान का आमंत्रण और अपने आराध्य की स्थापना हेतु आचार्य पद अस्वीकार कर दे? रावण ने अपने आपको संभाल कर कहा –" आप पधारें। यजमान उचित अधिकारी है। उसे अपने दूत को संरक्षण देना आता है। राम से कहिएगा कि मैंने उसका आचार्यत्व स्वीकार किया।" जामवन्त को विदा करने के तत्काल उपरान्त लंकेश ने सेवकों को आवश्यक सामग्री संग्रह करने हेतु आदेश दिया और स्वयं अशोक वाटिका पहुँचे, जो आवश्यक उपकरण यजमान उपलब्ध न कर सके जुटाना आचार्य का परम कर्त्तव्य होता है। रावण जानता है कि वनवासी राम के पास क्या है और क्या होना चाहिए। अशोक उद्यान पहुँचते ही रावण ने सीता से कहा कि राम लंका विजय की कामना से समुद्रतट पर महेश्वर लिंग विग्रह की स्थापना करने जा रहे हैं और रावण को आचार्य वरण किया है। " .यजमान का अनुष्ठान पूर्ण हो यह दायित्व आचार्य का भी होता है। तुम्हें विदित है कि अर्द्धांगिनी के बिना गृहस्थ के सभी अनुष्ठान अपूर्ण रहते हैं। विमान आ रहा है, उस पर बैठ जाना। ध्यान रहे कि तुम वहाँ भी रावण के अधीन ही रहोगी। अनुष्ठान समापन उपरान्त यहाँ आने के लिए विमान पर पुनः बैठ जाना। " स्वामी का आचार्य अर्थात स्वयं का आचार्य। यह जान जानकी जी ने दोनों हाथ जोड़कर मस्तक झुका दिया। . स्वस्थ कण्ठ से "सौभाग्यवती भव" कहते रावण ने दोनों हाथ उठाकर भरपूर आशीर्वाद दिया। सीता और अन्य आवश्यक उपकरण सहित रावण आकाश मार्ग से समुद्र तट पर उतरे । " आदेश मिलने पर आना" कहकर सीता को उन्होंने विमान में ही छोड़ा और स्वयं राम के सम्मुख पहुँचे । जामवन्त से संदेश पाकर भाई, मित्र और सेना सहित श्रीराम स्वागत सत्कार हेतु पहले से ही तत्पर थे। सम्मुख होते ही वनवासी राम आचार्य दशग्रीव को हाथ जोड़कर प्रणाम किया। " दीर्घायु भव ! लंका विजयी भव ! " दशग्रीव के आशीर्वचन के शब्द ने सबको चौंका दिया । सुग्रीव ही नहीं विभीषण की भी उन्होंने उपेक्षा कर दी। जैसे वे वहाँ हों ही नहीं। भूमि शोधन के उपरान्त रावणाचार्य ने कहा " यजमान ! अर्द्धांगिनी कहाँ है ? उन्हें यथास्थान आसन दें।" श्रीराम ने मस्तक झुकाते हुए हाथ जोड़कर अत्यन्त विनम्र स्वर से प्रार्थना की कि यदि यजमान असमर्थ हो तो योग्याचार्य सर्वोत्कृष्ट विकल्प के अभाव में अन्य समकक्ष विकल्प से भी तो अनुष्ठान सम्पादन कर सकते हैं। " अवश्य-अवश्य, किन्तु अन्य विकल्प के अभाव में ऐसा संभव है, प्रमुख विकल्प के अभाव में नहीं। यदि तुम अविवाहित, विधुर अथवा परित्यक्त होते तो संभव था। इन
Sudhir Kumar